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साहित्य और पत्रकारिता एक दूसरे के पूरक: कुलपति

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कुलपति संवाद ऑनलाइन व्याख्यानमाला में कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे ने कहा साहित्य के बिना पत्रकारिता की बात और पत्रकारिता के बिना साहित्य का जिक्र करना बेमानी होगी। पत्रकारिता अपने उछ्वव से ही लोकमंगल का भाव लेकर चली है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Jun 2020 09:47 PM (IST)Updated: Fri, 12 Jun 2020 09:47 PM (IST)
साहित्य और पत्रकारिता एक दूसरे के पूरक: कुलपति

सिद्धार्थनगर : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित कुलपति संवाद ऑनलाइन व्याख्यानमाला में कुलपति प्रो. सुरेन्द्र दुबे ने कहा साहित्य के बिना पत्रकारिता की बात और पत्रकारिता के बिना साहित्य का जिक्र करना बेमानी होगी। पत्रकारिता अपने उछ्वव से ही लोकमंगल का भाव लेकर चली है। साहित्य का भी यही भाव हमेशा रहा है। इसीलिए दोनों हमेशा साथ-साथ चले हैं।कुलपति ने कहा पत्रकारिता शुरूआत से ही अन्याय, अनीति, अत्याचार एवं शासन के खिलाफ रही है। यही कारण था कि हिक्की के समाचार पत्र को प्रतिबंधित किया गया, क्योंकि वह अंग्रेज अधिकारियों के भ्रष्टाचार को उजागर करता था। साहित्य और पत्रकारिता का जो संबंध है वह भारतेंदु हरिश्चंद्र युग की पत्रकारिता में देखा जा सकता है। वीणा, सरस्वती, मतवाला आदि कई पत्रिकाओं ने कई बड़े साहित्यकारों को जन्म दिया, तो वहीं कई साहित्यकारों ने सुप्रसिद्ध पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया है।

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