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राम-सीता विवाह कथा सुनकर श्रद्धालु भावुक

राजा जनक के दरबार में भगवान शिव का धनुष रखा हुआ था। एक दिन सीता ने घर की सफाई करते हुए उसे उठाकर दूसरी जगह रख दिया। जिसे देख राजा जनक को आश्चर्य हुआ क्योंकि धनुष किसी से उठता नहीं था। राजा ने प्रतिज्ञा ली कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा उसी से सीता का विवाह होगा।

By JagranEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 10:50 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 10:50 PM (IST)
राम-सीता विवाह कथा सुनकर श्रद्धालु भावुक
राम-सीता विवाह कथा सुनकर श्रद्धालु भावुक

सिद्धार्थनगर : भनवापुर ब्लाक के रगड़गंज बाजार मे चल रहे संगीतमयी रामकथा में बुधवार की रात कथाव्यास बलराम दास जी महाराज ने सीता-राम विवाह की कथा सुनाई। जिसको सुनकर श्रोता भाव-विभोर हो उठे। उन्होंने कहा कि राजा जनक के दरबार में भगवान शिव का धनुष रखा हुआ था। एक दिन सीता ने घर की सफाई करते हुए उसे उठाकर दूसरी जगह रख दिया। जिसे देख राजा जनक को आश्चर्य हुआ, क्योंकि धनुष किसी से उठता नहीं था। राजा ने प्रतिज्ञा ली, कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से सीता का विवाह होगा। उन्होंने स्वयंवर की तिथि निर्धारित कर सभी देश के राजा और महाराजाओं को निमंत्रण पत्र भेजा। समय पर स्वयंवर की कार्रवाई शुरू हुई और एक-एक कर लोगों ने धनुष उठाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। गुरु की आज्ञा से श्रीराम धनुष उठा प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो वह टूट गया। धनुष टूटते ही तीनों लोक जयकारे से गूंज उठा। जिसके उपरात राम-सीता विवाह संपन्न हुआ।

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थाना क्षेत्र के बायताल गांव स्थित रामजानकी मंदिर परिसर में चल रहे रामलीला मंचन के तीसरे दिन अहिल्या उद्धार व जनकपुर में पुष्प फुलवारी लीला का कलाकारों की ओर से बेहतरीन मंचन किया गया। जिसे देख दर्शक भाव विभोर हो गए।

बुधवार की रात रामलीला में गुरु विश्वामित्र के साथ गए राम और लक्ष्मण ने ताड़का नाम की विकराल राक्षसी का वध करके यज्ञ संपन्न कराए। इसके बाद गौतम ऋषि के श्राप से नारी से शिला बनी अहिल्या का उद्धार किया। पत्थर पर जैसे भगवान श्री राम ने पैर रखा तो श्रापित अहिल्या फिर से नारी रूप में प्रकट हुई। ऋषि विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण जनकपुर पहुंचे। राजा जनक ने मुनिवर विश्वामित्र व राम का स्वागत सत्कार किया। जहां पूजा के लिए जनक की पुष्प वाटिका में पुष्प चुनने के लिए राम व लक्ष्मण गए। वहां दोनों भाइयों को देख नगरवासी आनंदित हुए। उसी समय मां पार्वती की पूजन करने सीता जी ने भगवान राम को देख मोहित हुई। उन्होंने पति के रूप में पाने के लिए मां गौरी का पूजन किया।


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