बयान बदलने के लिए दे रहे एक लाख
पड़िता के बयान से उलझता जा रहा मामला
सिद्धार्थनगर : यदि पैसा है तभी यहां न्याय की लड़ाई लड़ी जा सकती है अन्यथा पुलिस सिर्फ पीड़ित को प्रताड़ित करने के अलावा कुछ नहीं करती। इटवा पुलिस पीड़ितों को न्याय नहीं दिलाती, बल्कि उनसे बयान बदलवाने की जीतोड़ कोशिश करती है, जिससे आरोपी भी बच निकले और पुलिसिया कार्यशैली पर सवाल भी न उठे। थाना क्षेत्र के एक गांव की छेड़खानी पीड़िता ने इटवा पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बयान बदलने का दबाव बनाकर थाने के विवेचक उसे एक लाख रुपये का लालच दे रहे थे। बात न मानने पर उसे लाकर पूरे दिन थाने में बिठाए रखा गया और उसे जेल भेजने की धमकी भी दी गई। छेड़खानी के आरोप में पीड़िता ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पुलिस बयान दर्ज करने की जगह बयान बदलने के लिए दबाव दे रही है। गुरुवार को थाने के एक विवेचक महिला कांस्टेबिल के साथ फिर पीड़िता के घर बयान लेने की बात पर पहुंचे। उसने आरोप लगाया कि युवती के अनुसार विवेचक बयान लेने की जगह उससे यह कहने लगे कि बयान बदल दो कि उसके साथ कोई छेड़खानी नहीं हुई है। तुम्हें एक लाख रूपए दिलवा रहा हूं। पीड़िता ने जब ऐसा कुछ करने से इंकार किया तो उसे और उसके पिता को विवेचक पकड़कर थाने पर ले आए और पूरा दिन उसे थाने पर बिठाए रखा। देर शाम जब पीड़िता की तबियत खराब होने लगी तब पिता पुत्री को थाने से घर भेजा गया। पीड़िता ने इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से की तो शुक्रवार को मुख्यालय से महिला सिपाहियों की टीम आई और मेडिकल के लिए जिला अस्पताल ले गई। हालांकि पीड़िता ने बताया देरशाम तक उसका मेडिकल नहीं हो सका। वह जिला अस्पताल में मौजूद है। थानाध्यक्ष अखिलानंद उपाध्याय ने कहा कि विवेचक पीड़िता से बयान लेने उसके घर गए थे, लेकिन उसने बयान देने से मना कर दिया और खुद अपने पिता के साथ आकर दिनभर इटवा थाने में बैठी रही। यहां यक्ष प्रश्न है कि पीड़िता यदि खुद थाने आकर जबरिया बैठी थी तो पुलिस ने समझा बुझाकर घर भेजने अथवा उच्चाधिकारियों को इस घटनाक्रम से अवगत कराना जरूरी क्यों नहीं समझा। पीड़िता प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तक प्रार्थनापत्र भेजकर इच्छा मृत्यु की मांग कर रही है और प्रशासन को आत्मदाह की चेतावनी दे रही है। ऐसे में अगर वह थाना परिसर में कुछ कर बैठती तो उसका जिम्मेदार कौन होता।