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चमकने के इंतजार में 32 साल का सिद्धार्थनगर

विदेशी पर्यटकों के लिए वर्ष 1987-88 में मुख्यालय पर रोडवेज के पास 11 लाख की लागत से पर्यटक आवास गृह का निर्माण कराया गया। 29 दिसंबर 1988 को जिला बनने के बाद यह प्रथम एसपी पीडी आदि अफसरों का आशियाना बन गया। उनके जाने के बाद इसे लोक निर्माण विभाग का स्टोर बना दिया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 28 Dec 2020 10:45 PM (IST)Updated: Mon, 28 Dec 2020 10:45 PM (IST)
चमकने के इंतजार में 32 साल का सिद्धार्थनगर
चमकने के इंतजार में 32 साल का सिद्धार्थनगर

सिद्धार्थनगर: विकास के जिन मानदंडों को पूरा करने के लिए 32 वर्ष पहले सिद्धार्थनगर को बस्ती से काटकर अलग जिला बनाया गया था, वह अधूरे ही हैं। नेपाल सीमा से लगा यह जिला न केवल अपने विकास की बाट जोह रहा है, बल्कि अपनी उन विरासतों के भी चमकने का इंतजार कर रहा है, जो इसकी पहचान है। सिद्धार्थ यानी गौतम बुद्ध की क्रीड़ास्थली पर कई विरासतें धूल धूसरित हो रही हैं। विकास के लिए जो वादे किए गए, वह भी अधूरे हैं।

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तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने अपने बजट भाषण में बस्ती जिले को विभाजित कर नौगढ़ को सिद्धार्थनगर नाम से नया जिला बनाने की घोषणा की थी। इसका शुभारंभ 29 दिसंबर 1988 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किया। जिला बनने में तत्कालीन राज्यमंत्री और वर्तमान सांसद जगदंबिका पाल, विधायक और मंत्री रहे धनराज यादव का कम योगदान नहीं रहा। बांसी और नौगढ़ मुख्यालय को लेकर विवाद हुआ तो मदद खलीलाबाद के तत्कालीन सांसद डा. चंद्रशेखर त्रिपाठी ने की थी, तब जिले का उदय हुआ। मुख्यालय से 22 किमी दूर नेपाल सीमा के करीब स्थित भगवान बुद्ध की क्रीड़ास्थली पिपरहवा-कपिलवस्तु में 22 मई 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने करोड़ों की परियोजनाओं का शिलान्यास किया। इनमें बौद्ध संग्रहालय व कला वीथिका भवन का ही निर्माण हो सका। हवाई पट्टी की योजना को कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री रहते निरस्त कर दिया था। इसके बाद भी कई घोषणाएं हुईं, लेकिन उन पर अमल नहीं हुआ। वर्ष 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कपिलवस्तु आकर 180 फीट ऊंची बुद्ध की प्रतिमा का शिलान्यास किया था। इसके बाद से किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। आवास गृह में नहीं पड़े पर्यटकों के कदम

विदेशी पर्यटकों के लिए वर्ष 1987-88 में मुख्यालय पर रोडवेज के पास 11 लाख की लागत से पर्यटक आवास गृह का निर्माण कराया गया। 29 दिसंबर 1988 को जिला बनने के बाद यह प्रथम एसपी, पीडी आदि अफसरों का आशियाना बन गया। उनके जाने के बाद इसे लोक निर्माण विभाग का स्टोर बना दिया गया। अब यह खाली है, लेकिन बीते पांच वर्षों से संचालन की कवायद हो रही है। बीते वर्ष फरीदाबाद की एक संस्था ने टेंडर भरा था, लेकिन आवागमन की सुविधा न होने से मन बदल लिया। बंद पड़ा है होटल शाक्य

कपिलवस्तु स्थित मुख्य स्तूप से पास अधिग्रहीत क्षेत्र में वर्ष 1994-95 में पर्यटन विभाग ने होटल शाक्य का निर्माण कराया था। दो-तीन साल तक होटल चला और फिर इसे बंद करना पड़ गया। इस होटल के संचालन की कई बार कोशिश हुई, लेकिन सफलता नहीं मिली। आज यह होटल बदहाल है। दरवाजा टूट चुके हैं। खिड़कियों के शीशे गायब हैं। एक निजी व्यक्ति से सरकार ने होटल चलाने का अनुबंध किया है, लेकिन फिर भी यह होटल नहीं चला। बौद्ध हेरिटेज सेंटर भी अनुपयोगी

वर्ष 1997-98 में होटल शाक्य के बगल में बौद्ध हेरिटेज सेंटर का निर्माण हुआ। उद्घाटन भी हुआ, लेकिन साधन और संसाधन की कमी से यह किसी काम न आ सका। आज यह भवन खंडहर में तब्दील हो रहा है। राज्यांश के अभाव में अधर में बुद्धा थीम पार्क

वर्ष 2012-13 में बुद्धा थीम पार्क के लिए तीन करोड़ 66 लाख 72 हजार रुपये का बजट स्वीकृत हुआ। केंद्र ने अपने हिस्से के दो करोड़ 58 लाख 60 हजार रुपये आवंटित कर दिए, लेकिन एक करोड़ आठ लाख 14 हजार रुपये का राज्यांश नहीं मिलने से काम अधूरा पड़ा है। वर्ष 2020 में भी राज्यांश नहीं मिलने के कारण इसे नये वर्ष में पूरा होने की उम्मीद नहीं दिख रही है।

क्षेत्रीय पर्यटक अधिकारी, बस्ती मंडल अरविद कुमार राय ने बताया कि

पर्यटकों की सुविधाओं के लिए मुख्यालय समेत कपिलवस्तु क्षेत्र में कई भवनों का निर्माण हुआ है। कुछ संचालित भी हैं। 108 फीट की बुद्ध की प्रतिमा के लिए और अधूरे थीमपार्क का निर्माण पूरा करने के लिए पूर्व जिलाधिकारी कुणाल सिल्कू ने भी प्रयास किया था। जिलाधिकारी दीपक मीणा की तरफ से भी बजट के लिए शासन को अनुरोध पत्र भेजा गया है।


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