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घरवालों की दुआएं थी, जिदगी मिली दोबारा

विजय द्विवेदी श्रावस्ती उत्तराखंड के चमोली जिले के तपोवन में आई आपदा को करीब से देखने वाले रनियापुर के हीरालाल तबाही की दास्तां सुनाते-सुनाते फोन पर ही रो पड़े।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2021 11:32 PM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2021 11:32 PM (IST)
घरवालों की दुआएं थी, जिदगी मिली दोबारा
घरवालों की दुआएं थी, जिदगी मिली दोबारा

विजय द्विवेदी, श्रावस्ती : उत्तराखंड के चमोली जिले के तपोवन में आई आपदा को करीब से देखने वाले रनियापुर के हीरालाल तबाही की दास्तां सुनाते-सुनाते फोन पर ही रो पड़े। बताया कि खौफनाक मंजर से अभी भी वह सहमे हुए हैं। कहते हैं वो खौफनाक मंजर देखा जो कभी भूलने वाला नहीं है। कहते हैं कि ईश्वर व घरवालों की दुआएं थी कि उन्हें दोबारा जिदगी मिल गई।

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श्रावस्ती जिला मुख्यालय भिनगा से भारत-नेपाल सीमा पर बसा रनियापुर गांव के अधिकांश लोग मेहनत मजदूरी करने के लिए परदेस जाते हैं। इन कमाने वालों में गांव के अधिकांश युवा हैं। आठ नवंबर को गांव के छोटू, हरीलाल, प्रभुनाथ, वेद प्रकाश, अजय कुमार, राजेश, हीरालाल व राजू समेत कई लोग उत्तराखंड गए थे। यह सभी चमोली जिले के तपोवन में विमल टनल में काम करते समय आई आपदा में सभी फंस गए। इनमें से हीरालाल, राजेश व राजू तो सुरक्षित निकल आए, लेकिन अन्य लोग लापता हो गए। हीरालाल ने आपदा और मौत को करीब से देखा है। कहते हैं कि भैया मलवे के ढेर में सैकड़ों जिदगियां खो गईं। अपनों की तलाश में आंसुओं से आंखे लाल हो गई हैं, लेकिन तीसरे दिन भी लापता हुए साथियों का पता नहीं चल सका है। जिस कंपनी में काम कर रहे थे, उनके कैंप में भोजन भले मिल रहा हो, लेकिन वह मंजर देख कर रूह कांप जाती है। हीरालाल कहते हैं कि वह अपने भाई के राजेश व राजू के साथ किनारे काम कर रहे थे। सुबह के 11 बजे होंगे कि भागो-भागो की आवाज ऊपर गांव से आई। शोर सुनकर हम लोग किसी तरह वहां से भाग निकले। इस दौरान पहले मलवे का प्रवाह बह निकला, जिसमें तमाम लोग दब गए। इसके बाद सैलाब आ गया। वे बताते हैं कि लापता हुए गांव के पांच लोग हमसे 15-20 मीटर की दूरी पर काम कर रहे थे। जब तक उन्हें आपदा आने की जानकारी हुई, तब तक वे सब सैलाब में लापता हो गए। बकौल हीरालाल सुरक्षित बचे लोगों को ढांढस बंधाने के लिए उनके फुफेरे भाई शोभाराम आए हैं। हम लोग गांव के गायब हुए लोगों की तलाश में जुटे हैं। अभी तक जितने लोग निकाले गए हैं, उनमें से हमारे गांव का कोई भी नहीं है। नीती घाटी से गुजरा सैलाब तो कभी नहीं भूला जा सकता है।


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