गांव में मिलता रोजगार तो नहीं जाते परदेस
गांव में मचा कोहराम उत्तराखंड की सैलाब से मुश्किल में है गांव
श्रावस्ती : दिन के करीब ढाई बज रहे थे। रनियापुर गांव में उत्तरी छोर पर उत्तराखंड की आपदा में लापता हुए अजय कुमार का घर बना है। आंगन में चारपाई पर इनकी पत्नी रेखा बेसुध पड़ी हैं। अगल-बगल बैठी महिलाएं गम में डूबी थीं। पास में बैठी रामरती, विमला देवी व पाटन देवी लोगों को समझा-बुझा रही थी कि ईश्वर जो करेगा अच्छा ही करेगा। भगवान चाहेंगे तो सभी सकुशल व सुरक्षित मिल जाएंगे। यह ²श्य सिर्फ अजय के घर का ही नहीं है, बल्कि ग्लेशियर टूटने से आए सैलाब में लापता हुए वेद प्रकाश, प्रभुनाथ, हरीलाल व छोटू के घरों का भी है। इन सबके घरों में कोहराम मचा है। बस एक ही शब्द लोगों के मुंह से निकल रहा है भगवान हमारे लालों की रक्षा करना।
सिरसिया ब्लॉक के मोतीपुरकला के आदिवासी थारू बाहुल्य गांव रनियापुर के 10-15 लोग आठ नवंबर को कमाने के लिए उत्तराखंड गए थे। इनमें से कुछ लोग घर में शादी-विवाह होने के कारण वापस लौट आए थे। वहां आठ लोग बचे हुए थे। सभी रविवार को चमोली जिले में ऋषि गंगा हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट निर्माण में मजदूरी कर रहे थे। इसी दौरान ग्लेशियर टूटने से आए सैलाब में पांच लोग बह गए, जबकि दो सगे भाई हीरालाल, राजेश कुमार व राजू पुत्र जीतू किसी तरह आपदा से बच गए। इन लोगों ने गांव में सूचना दी। आपदा की खबर सुनते ही लापता हुए युवकों के परिवार पर पहाड़ टूट पड़ा। चीत्कारों से गांव दहल उठा। घटना के दूसरे दिन भी गांव में मातम पसरा रहा। अधिकारियों का आना-जाना बना रहा। रामरती व दशनी कहती हैं कि गांव में ही अगर रोजगार मिल जाता तो सब उत्तराखंड क्यों जाते। इनकी बातों की पुष्टि करती हुई सोन चिरैया कहती है कि इस पिछड़े इलाके में गरीबों की सुने तो कौन। गांव में 25 वर्षों से दुकान कर रहे विजय कुमार सोनी कहते हैं कि सिर्फ छोटू का ही जॉबकार्ड बना है। पूर्व प्रधान चीपू व शिक्षक अयोध्या प्रसाद राना इस घटना से काफी आहत हैं। कहते हैं कि रोजगार देने की बात तो कही जाती है, लेकिन आस वर्षों से नहीं पूरी होती है। अजय की 10 वर्षीय पुत्री वंदना व सात वर्षीय पुत्री अनामिका अपनी मां को बार-बार समझा रह हैं कि मम्मी पापा जरूर आएंगे। वेद प्रकाश की पत्नी सुशीला अपनी एक वर्षीय पुत्री ईष्टा को लेकर दहाड़े मार-मार कर रो रही है और भगवान बिटिया का क्या होगा। एसडीएम प्रवेंद्र कुमार कहते हैं कि सब लोग स्वतंत्र हैं। कमाने के लिए कहीं भी जा सकते हैं। मनरेगा में सभी को काम दिया जा रहा है।