श्रावस्ती में संरक्षित स्मारक व पार्कों के खुले द्वार, पर्यटकों का इंतजार
अषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होता है वर्षावास बौद्ध भर में इसका है महत्व
संसू, इकौना(श्रावस्ती) : अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल श्रावस्ती में पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित स्मारक व पार्क सोमवार को खोल दिए गए हैं। तीर्थयात्रियों व पर्यटकों से श्रावस्ती सूनी रही।
कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार और लॉकडाउन के कारण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से संरक्षित स्मारक व पार्क मार्च के अंतिम सप्ताह में बंद कर दिए गए थे। तभी से श्रावस्ती स्थित जेतवन महाविहार के कपाट भी बंद थे। अनलॉक-2 में सोमवार को देश भर में पुरातत्व संरक्षित स्मारक खोलने का आदेश आया तो जेतवन महाविहार भी तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। सुबह से शाम तक यहां पर्यटक या तीर्थयात्री नजर नहीं आए। इससे वर्षावास काल में बौद्ध तपोभूमि पर सन्नाटा पसरा रहा। बौद्ध परंपरा में अषाढ़ मास की पूर्णिमा से वर्षावास प्रारंभ होता है और आश्विन पूर्णिमा को समाप्त होता है। इस दौरान बौद्ध भिक्षु, उपासक, साधक बौद्ध विहार या एक निश्चित स्थान पर रुककर ध्यान साधना व ज्ञानार्जन करते हैं। भंते विमल तिस्य कहते हैं कि बौद्ध धर्म में वर्षा वास संकल्प का बहुत महत्व है। बुद्ध विहार में आसपास व सुदूर क्षेत्र के उपासक बौद्ध संघ के सानिध्य में रहकर बुद्ध उपदेश का श्रवण अध्ययन व पालन कर वर्षावास का संकल्प पूरा करते हैं। श्रावस्ती में भी देश-विदेश के बौद्ध मतावलंबी वर्षावास में ठहर कर ध्यान साधना करते हैं। वर्षावास में देश-विदेश के तीर्थयात्री भ्रमण पर भी आते हैं। जेतवन महाविहार प्रभारी अखिलेश तिवारी ने बताया कि पिछले वर्ष जुलाई माह में 1200 देशी-विदेशी तीर्थयात्री आए थे। इस बार लॉकडाउन का असर हैं। सावन के पहले दिन सिद्धार्थ नगर के 13 तीर्थ यात्रियों ने जेतवन में पूजा-अर्चना की।