पंजीकरण के बाद गुम हो जाते हैं नर्सिंगहोम के डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मी
गली-कूचों में खुले अस्पताल स्नातक पास कर रहे अल्ट्रासाउंड व इलाज संविदा सरकारी चिकित्सक के भरोसे नर्सिंग होम
भूपेंद्र पांडेय, श्रावस्ती : तराई में स्वास्थ्य सेवाओं का बाजार विकसित किया जा रहा है। कागजी कोरम पूरा कर गली-मुहल्लों में नर्सिंगहोम खुल रहे हैं। पंजीकरण के समय हलफनामा देने वाले डॉक्टर व अन्य स्वास्थ्यकर्मी अस्पताल के आसपास कभी नजर नहीं आते हैं। सरकारी अस्पतालों के संविदा चिकित्सकों के सहारे नर्सिंग होम का संचालन हो रहा है। यही हाल पैथालॉजी व डायग्नोसिस सेंटर का भी है। यहां स्नातक पास युवक-युवतियां जांच कर रहे हैं। जिम्मेदारों के नाक के नीचे बीमार लोगों को इलाज के नाम पर ठगा जा रहा है। व्यवस्था की इस बदहाली को रोकने के लिए कोई प्रयास होता नहीं दिख रहा।
नेपाल सीमा से सटा श्रावस्ती जिला शिशु एवं मातृ-मृत्युदर से लेकर कुपोषण तक के मामले में सबसे खराब स्थिति में है। गर्भवती महिलाओं व किशोरियों में खून की कमी यहां आम बात है। गंभीर बीमारी से ग्रसित कई लोगों को मौत के मुहाने पर पहुंचने के बाद बीमारी की जानकारी होती है। इन विसंगतियों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जिला अस्पताल के अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का भरोसा है। अरसे से यह अस्पताल सरकारी डॉक्टरों के भरोसे चल रहे थे। बीते कुछ वर्षों में यहां विशेषज्ञ चिकित्सकों के नाम पर बड़ी संख्या में संविदा डॉक्टरों की तैनाती की गई है। वेतन के तौर पर इन्हें मोटी रकम का भुगतान किया जाता है। इसी बीच अचानक से गली-कूचों में नर्सिंग होम खुल गए हैं। वर्तमान समय में कुल 12 नर्सिंग होम, चार निजी पैथोलॉजी व 15 डायग्नोसिस सेंटर चल रहे हैं। इनमें से अधिकांश पर अप्रशिक्षित स्नातक पास युवक-युवतियां काम करते देखे जा सकते हैं। नर्सिंग होम चलाने के लिए नाम भले किसी चिकित्सक का दर्ज हो, लेकिन सेवाएं सरकारी अस्पताल के संविदा डॉक्टरों से ही ली जा रही हैं। आलम यह है कि सरकारी अस्पताल में इलाज अथवा ऑपरेशन के लिए आने वाले लोगों को बरगला कर नर्सिंग होम में बुलाया जाता है। इनसेट
क्या है नियम
नर्सिंग होम, पैथोलॉजी अथवा डायग्नोसिस सेंटर के पंजीकरण के समय यहां सेवा देने वाले चिकित्सक व अन्य स्वास्थ्यकर्मी सीएमओ के नाम से हलफनामा देते हैं। इस हलफनामे में चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी नर्सिंग होम पर मौजूद रहने की शपथ लेते हैं। पर्याप्त मानव संसाधन होने के बाद ही रजिस्ट्रेशन के लिए लाइसेंस जारी होता है। इसमें किसी भी प्रकार के बदलाव की सूचना सीएमओ को देनी होती है। इन नियमों के सहारे पंजीकरण की प्रक्रिया तो पूरी की जा रही है, लेकिन शपथ पत्र देने वाले अपनी सेवाएं कहां दे रहे हैं यह देखने की जहमत कोई नहीं उठा रहा है।
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वर्जन
सीएमओ डॉ. एपी भार्गव ने बताया कि नर्सिंग होम पंजीकरण के समय दर्ज डॉक्टर को यहां रहकर इलाज करना होता है। इसमें किसी प्रकार के बदलाव की सूचना देनी होती है। अभी तक पंजीकृत अस्पतालों में कोई बदलाव नहीं कराया गया है। समय-समय पर नर्सिंग होम व अन्य केंद्रों की जांच होती है।