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जुर्माना भर देंगे, लेकिन सुधरेंगे नहीं

और इस तरह स्टेयरिग यातायात व्यवस्था को झटका दे रहे हैं ऐसे चालक

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2020 09:43 PM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2020 09:43 PM (IST)
जुर्माना भर देंगे, लेकिन सुधरेंगे नहीं
जुर्माना भर देंगे, लेकिन सुधरेंगे नहीं

जासं, श्रावस्ती : यातायात नियमों की जानकारी तो रहती है, लेकिन कानून-कायदे का कोई पालन नहीं करते हैं। जुर्माना भी भर देंगे, लेकिन सुधरेंगे नहीं। वाहनों पर बतौर हेल्पर काम करने वाले कुछ दिन बाद स्टेयरिग थाम लेते हैं। सड़क सुरक्षा के नाम पर इन वाहन चालकों को न तो कोई तकनीकी जानकारी होती है। न ही इनके लिए कोई प्रशिक्षण की व्यवस्था है। यही वजह है कि सड़कों पर आए दिन हादसे हो रहे हैं। यातायात व्यवस्था को झटका दे रहे ऐसे वाहन चालकों के लिए संबंधित विभाग ही धृतराष्ट्र बना हुआ है।

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श्रावस्ती जिले के विभिन्न मार्गो पर चल रहे डग्गामार वाहनों में सवारी बैठाने व किराया वसूलने के लिए चालकों या मालिकों द्वारा प्रतिदिन के हिसाब से हेल्पर रखा जाता है, जिनमें अधिकांश किशोर ही होते हैं। ये किशोर किराया वसूलने के साथ-साथ सवारी तो बैठाते ही हैं, मौका पाकर वाहन की स्टेयरिग पकड़ कर उन्हें आगे पीछे करते हैं। थोड़ा सा जानकारी हो जाने पर इन अप्रशिक्षित चालक वाहन के साथ फर्राटे भरने लगते हैं। पैसा कमाने की ललक और अति उत्साह में वे तेज चालकों के सामने सुरक्षा की जिम्मेदारी गति से भी वाहनों को चलाने में नहीं चूकते। इस दौरान जरा सी असावधानी पर ऐसे चालक अपनी जान के साथ-साथ यात्रियों को भी जोखिम में डाल रहे है। ऐसी घटनाएं बहराइच-बलरामपुर (बौद्ध परिपथ) मार्ग पर आए दिन होती रहती है। कानून कायदे के अनुसार बालिग ही स्टेयरिग थाम सकते हैं। मगर श्रावस्ती में नाबालिग वहां चालकों की भी कमी नहीं है। इसके लिए सहायक संभागीय परिवहन के आला अधिकारी तो जिम्मेदार हैं ही, लेकिन पुलिस भी कम जिम्मेदार नहीं है। लगता है कि ऐसे चालकों के सामने सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाले लोग कमजोर दिख रहे हैं। आवागमन का दबाव दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। जिले की सड़कों पर 35 हजार से ज्यादा वाहन दौड़ रहे हैं। इनकी बढ़ती संख्या और विस्तार ले रही आबादी के कारण नियंत्रण करना या सहज बनाए रखना काफी मुश्किल हो रहा है। शायद यही कारण है कि दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। सड़कों को रौंदते यातायात को काबू में रखने के लिए बनी योजनाएं भी यहां नहीं दिखती। अब भी स्थिति यह है कि बीस साल पहले यातायात पर नियंत्रण करने के लिए जो व्यवस्था तय हुई थी, वही आज भी लागू है। बेकाबू यातायात को सुचारू रखने की जिम्मेदारी मुट्ठी भर लोगों पर है। इनके दम पर हजारों को नियंत्रित करना फिलहाल संभव नहीं है। हकीकत यह है कि समस्या से जूझने के लिए जितने कर्मियों की जरूरत है उसके आधे भी मौजूद नहीं है। हास्यास्पद तो यह है कि अगर मानकों के लिहाज से कार्रवाई हो तो स्थिति अपने आप में अकल्पनीय है। यातायात प्रभारी राजीव मिश्र कहते हैं कि चेकिग अभियान चलाया जाता है। ई- चालान भी किया जाता है। इन सबके बावजूद चालक हैं कि सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं।


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