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बचत)-जागरण सरोकार-सुशिक्षित समाज)- 30 वर्षों से गांव-गांव किताबें बांट रहे कामेश्वर

अशिक्षा का तिमिर मिटाने की जारी है मुहिम सामाजिक कुरीतियों पर भी करते हैं प्रहार ि

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Mar 2021 04:52 PM (IST)Updated: Tue, 30 Mar 2021 04:52 PM (IST)
बचत)-जागरण सरोकार-सुशिक्षित समाज)-
30 वर्षों से गांव-गांव किताबें बांट रहे कामेश्वर
बचत)-जागरण सरोकार-सुशिक्षित समाज)- 30 वर्षों से गांव-गांव किताबें बांट रहे कामेश्वर

अशिक्षा का तिमिर मिटाने की जारी है मुहिम, सामाजिक कुरीतियों पर भी करते हैं प्रहार

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चित्र परिचय- 30एसआरटी10 में फोटो है।

भुवनेश्वर वर्मा, सोनवा (श्रावस्ती) : श्रावस्ती की देव भूमि में भगवान बुद्ध के उपदेशों से प्रभाव से अंगुलिमाल संत बन गया था। जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी के चार कल्याणक भी यहीं हुए हैं। भगवान लवकुश की राजधानी होने का गौरव भी श्रावस्ती के पास है। इन महापुरुषों ने अपने विचारों से समाज में बड़े बदलाव की आधार शिला रखी थी। इसी धरती पर जन्मे हुसेनपुर खुरुहरी गांव निवासी कामेश्वर मिश्र 30 वर्षों से गांव-गांव किताबें बांट कर अशिक्षा का तिमिर मिटाने के लिए प्रयासरत हैं।

भारत-नेपाल सीमा पर स्थित श्रावस्ती, जिला साक्षरता के मामले में देश के अंतिम पायदान पर है। लोगों में पढ़ने-लिखने की आदत डालने के लिए गिलौला ब्लॉक के कामेश्वर ने वर्ष 1982 में अपने शैक्षिक जीवन के दौरान ही गांव-गांव जाकर दीवारों पर सद्वाक्य लेखन शुरू किया। इसके लिए गायत्री परिवार से मिली शिक्षा व संस्कार ने उन्हें प्रेरित किया। सामाजिक कुरीतियों व अशिक्षा के विरुद्ध लोगों को जागरूक करने के साथ नारी सशक्तीकरण, पर्यावरण संरक्षण, दहेज व नशा उन्मूलन समेत अन्य विषयों पर उन्होंने कच्ची दीवारों पर गेरू से सद्वाक्य लेखन किया। वर्ष 1992 में मकान पक्के होने लगे तो दीवार लेखन छोड़कर उन्होंने स्टीकर चस्पा करना व वितरित करना शुरू कर दिया। अपनी पढ़ाई के दौरान ही वे जेब खर्च के लिए मिलने वाले पैसे बचाकर इन कार्यों पर खर्च करते थे। वर्ष 1995 में कामेश्वर ने लोगों की रुचि पढ़ने में विकसित करने के लिए झोला पुस्तकालय की शुरुआत की। आसपास के गांवों में जाकर उन्होंने 50 पाठक बनाए। रजिस्टर पर उनका नाम दर्ज कर सप्ताह में एक दिन पैदल जाकर उन्हें पुस्तकें देते व उनकी अदला-बदली करते। इससे पाठकों को अलग-अलग विषयों पर पढ़ने का मौका मिलता था। पांच साल बाद उन्होंने एक निजी स्कूल में शिक्षण कार्य के साथ ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। इससे होने वाली आय से साइकिल खरीदी। अब वे शिक्षण कार्य के साथ पुस्तक वितरण का काम भी साइकिल से करने लगे। इस दौरान लोगों को पौधरोपण व पर्यावरण संरक्षण का पाठ भी पढ़ाते रहे। वर्तमान में वे अपनी आमदनी का पांचवां हिस्सा पुस्तक वितरण पर खर्च कर रहे हैं। इनसेट

मांगलिक कार्यक्रमों में उपहार में देते हैं किताबें : किताबें पढ़कर समाज में बदलाव लाया जा सकता है। इसे अपना सूत्र वाक्य मानकर कामेश्वर शादी, विवाह, मुंडन समेत अन्य मांगलिक आयोजनों में भी उपहार स्वरूप लोगों को पुस्तकें वितरित करते हैं। किसी के जन्मदिन कार्यक्रम में शामिल होने पर वे पौधरोपण अनिवार्य रूप से कराते हैं। कामेश्वर अब तक 15 हजार से अधिक किताबें लोगों में बांट चुके हैं।


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