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घर लौट रहे प्रवासियों को सता रही रोजगार की चिता

प्रवासियों के घर लौटने का सिलसिला जारी है। घर लौटे प्रवासियों के सामन

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 11:21 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 11:21 PM (IST)
घर लौट रहे प्रवासियों को सता रही रोजगार की चिता
घर लौट रहे प्रवासियों को सता रही रोजगार की चिता

विजय द्विवेदी, श्रावस्ती

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प्रवासियों के घर लौटने का सिलसिला जारी है। घर लौटे प्रवासियों के सामने रोजगार की समस्या से निपटने की बड़ी चुनौती है। साथ ही कोरोना का खौफ सामाजिक ताने-बाने को भी तार-तार कर रहा है। गांव के लोगों की क्या कहें अपनों ने भी दूरी बना ली है।

श्रावस्ती में अब तक आन रिकॉर्ड 43 हजार 553 प्रवासी मजदूर व कामगार घर लौट चुके हैं, लेकिन इनकी संख्या कहीं अधिक है। 36 हजार 204 प्रवासी अभी भी होम क्वारंटाइन में हैं, जो क्वारंटाइन से बाहर निकल चुके हैं, उन्हें रोजगार से जूझना पड़ रहा है। गिलौला ब्लॉक क्षेत्र के नेवरिया गांव के दो सगे भाई शिवकुमार व अनिल कुमार, सुनील, पंकज व मनोहर दिल्ली में, प्रदीप, कयामुद्दीन व सुरेश राजकोट में रहते थे। लॉकडाउन के बाद गांव वापस लौट चुके हैं। इन लोगों के पास रोजगार की समस्या खड़ी है। कारण कि इनका जॉबकार्ड नहीं बना है। सुनील, पंकज ही नहीं गांव में 32 और लोग ऐसे हैं, जिनके पास जॉबकार्ड नहीं है। ग्राम प्रधान के पुत्र रामराज वर्मा बताते हैं कि ऐसे लोगों को रोजगार देने में दिक्कतें आ रही हैं। हरिहरपुररानी ब्लॉक के बैरागीजोत के राघवराम व प्रकाश दिल्ली से गांव की ओर लौट आए हैं। मनरेगा के तहत जॉबकार्ड तो बना है, लेकिन काम नहीं मिला है। इनके माथे पर रोजगार को लेकर चिता की लकीरें गहराने लगी हैं। शहर से काम छूटा तो गांव लौैटे। यहां भी भविष्य नहीं दिख रहा है। ऐसे में अपने ही घर में बोझ बनकर रह रहे हैं। इकौना ब्लॉक के चिचड़ी के रहने वाले लल्लन दिल्ली में रहकर दो वर्ष से मजदूरी कर रहे थे। लॉकडाउन के बाद घर लौट आए हैं। जॉबकार्ड नहीं है। रोजगार मिल नहीं रहा है। ऐसे में अपने आठ परिवारों की रोजी-रोटी चलाना मुश्किलों से भरा है। आवास भी इनके पास नहीं है। अपने पुस्तैनी टूटी झोपड़ी में रह रहे हैं। अकबरपुर के ग्राम प्रधान अनुरुद्ध मिश्रा ने बताया कि बाहर से लोग लौट रहे हैं तो संसाधनों पर भी दबाव बढ़ गया है। खरगौरा बस्ती के के ग्राम प्रधान ओम प्रकाश द्विवेदी कहते हैं कि गांव लौटने वाले प्रवासी मनरेगा में फावड़ा नहीं उठाएंगे। वे फिर शहरों की ओर रुख करेंगे। क्योंकि यहां स्थिति उनके अनुकूल नहीं है।


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