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क्रांति की शौर्य गाथा का प्रतीक है अंग्रेजों की तहसील

1857 की क्रांति में शामली ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। इसकी गवाह अंग्रेजों के जमाने की तहसील है। इसे आजादी की लड़ाई लड़ने वालों ने जला दिया था। गदर दबाने के बाद अंग्रेजों ने शामली से तहसील समाप्त कर दी थी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Nov 2019 10:41 PM (IST)Updated: Mon, 25 Nov 2019 06:01 AM (IST)
क्रांति की शौर्य गाथा का प्रतीक है अंग्रेजों की तहसील
क्रांति की शौर्य गाथा का प्रतीक है अंग्रेजों की तहसील

शामली, जेएनएन। 1857 की क्रांति में शामली ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। इसकी गवाह अंग्रेजों के जमाने की तहसील है। इसे आजादी की लड़ाई लड़ने वालों ने जला दिया था। गदर दबाने के बाद अंग्रेजों ने शामली से तहसील समाप्त कर दी थी। तहसील के अवशेष आज भी मौजूद हैं, लेकिन इसके काफी हिस्से पर अवैध कब्जा हो गया है और कुछ हिस्से आज भी मौजूद हैं, लेकिन गुमनामी में हैं। यह धरोहर आज भी लोगों को क्रांति की याद दिलाती है।

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देश को आजादी दिलाने में शामली की कम बड़ा योगदान नहीं रहा। अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में क्रांति की शुरूआत हुई थी। इसमें शामली के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्से लिया था। आजादी के दीवानों ने बरखंडी स्थित तहसील को जला दिया था, जहां अंग्रेज सैनिक पनाह लिए हुए थे। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने उस वक्त के आधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेज सैनिकों को नाकों चने चबवा दिए थे और तहसील पर कब्जा कर लिया था। शामली के चौधरी मोहर सिंह ने थानाभवन के काजी नियामत अली खां और महबूब अली खां के साथ मिलकर तहसील के साथ तत्कालीन डीएम वर्डफोर्ड के आवास को जला दिया था। किसी तरह डीएम बच निकला था। इसके बाद फतेहपुर के पास अंग्रेजों की सेना और आजादी के दीवानों के बीच संघर्ष हुआ था। अंग्रेजों ने शामली के चारों तरफ तोप लगा दी थी। इसमें 225 पुरुष और 27 महिलाएं शहीद हुई थी। खौफ पैदा करने के लिए चौधरी मोहर सिंह को तो तीन दिन तक फांसी पर लटकाया गया था। ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह की इस आग को शांत करने के बाद शामली तहसील का दर्जा खत्म कर दिया। 1889 में नई तहसील कैराना में बना दी गई। पुरानी तहसील के अवशेष ही बचे हैं। आजादी के बाद 1998 में कैराना तहसील को दो भागों में विभाजित किया गया था और शामली तहसील बनी था।

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नहीं हुआ धरोहर को संजोने का प्रयास

अंग्रेजों के जमाने की तहसील आजादी के दीवानों के शौर्य और साहस को दर्शाती है। इस धरोहर को संजोने का प्रयास कभी नहीं हुआ, इसके बावजूद काफी लोग इसे देखने के लिए पहुंचते हैं। काफी समय तक इसमें आरके पीजी कॉलेज को भी संचालित किया गया। अब यहां झाड़ियां उगी हैं और चारों तरफ गंदगी रहती है। लोग बकरी और भैंस आदि बांध देते हैं।


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