44 करोड़ रुपये से संवरेगी झिझाना-थानाभवन मार्ग की सूरत
झिझाना से थानाभवन तक बदहाल मार्ग की सूरत बदलेगी। 30 किमी लंबा यह मार्ग जल्द ही दस मीटर चौड़ा होगा और इसके निर्माण पर 44 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
शामली, जागरण टीम। झिझाना से थानाभवन तक बदहाल मार्ग की सूरत बदलेगी। 30 किमी लंबा यह मार्ग जल्द ही दस मीटर चौड़ा होगा और इसके निर्माण पर 44 करोड़ रुपये खर्च होंगे। प्रहरी एप पर जारी किए गए इस टेंडर में 16 निर्माण कंपनियों ने रुचि दिखाई है। इस मार्ग के निर्माण से पड़ोसी जनपदों के साथ ही अन्य राज्यों में भी आवागमन बेहद सुलभ हो जाएगा। यही नहीं झिझाना से कैराना तक बन चुका मार्ग भी इसी से लिक होगा।
लोक निर्माण विभाग ने अहम स्थानों को लिक करते हुए जनपद के एक कोने से दूसरे कोने तक बदहाल मार्ग को शानदार शक्ल देने की तैयारी की है। कैराना, झिझाना, ऊन और थानाभवन तक संकीर्ण और बदहाल मार्ग को दस मीटर चौड़ा बनाया जाएगा। 30.900 किमी लंबे इस मार्ग पर करीब 44 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इस मार्ग के निर्माण से बागपत, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर ही नहीं बल्कि उत्तराखंड और हरियाणा तक का सफर सुगम हो जाएगा। यही नहीं जिले के लोगों को एक कोने से दूसरे कोने तक नया मार्ग मिल जाएगा। इससे जाम से तो मुक्ति मिलेगी ही, एक नया विकल्प भी मिलेगा। इसके अलावा जिले के सभी मुख्य कस्बे भी मुख्य मार्ग से जुड़ जाएंगे। लोक निर्माण विभाग के अफसरों का कहना है कि यह इस जिले का अभी तक सबसे बड़ा टेंडर है। इस सड़क के निर्माण के लिए 16 कंपनियों ने टेंडर डाले हैं। प्रहरी एप ने इन कंपनियों के प्रस्तावों को प्राथमिक रूप से स्वीकार कर लिया है। अब देखना यह है कि टेंडर किस कंपनी को मिलता है। लोक निर्माण विभाग के एक्सईएन रविद्र कुमार राणा का कहना है कि झिझाना से थानाभवन तक बनने वाला यह मार्ग कैराना से झिझाना तक बन चुके मार्ग से लिक किया जाएगा। इसके बाद दस मीटर चौड़े इस मार्ग पर शानदार सफर तय किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि इस परियोजना पर जल्द ही काम शुरू होगा। चौधरी एसोसिएट्स दौड़ से बाहर
शामली : जिले के इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए 17 कंपनियों ने अपने टेंडर डाले थे। प्रहरी एप पर डाले गए टेंडर की स्थिति संबंधित ठेकेदारों को अवगत करा दी गई है। इसमें 16 कंपनियों के टेंडर सही पाए गए हैं। एप पर चौधरी एसोसिएट्स के सामने नोन-रेस्पान्सिव दर्शाया गया है। लोनिवि अफसरों का कहना है कि नोन-रेस्पान्सिव का मतलब है कि कंपनी किसी मानक पर खरी नहीं उतरी है। हालांकि इस मामले में स्थानीय अधिकारियों की कोई भूमिका नहीं होती। यह मामला लखनऊ में उच्चाधिकारियों के स्तर से तय होता है।