जहां स्थापित है पार्श्वनाथ की प्राचीन मूल प्रतिमा
शामली जेएनएन जलालाबाद का जैन मंदिर ऐतिहासिक होने के साथ ही श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां पर उत्तर भारत से बड़ी संख्या में जैन समाज के साथ ही अन्य समाजों के लोग भी पहुंचते हैं। भगवान पार्श्वनाथ की लघु पाषाण प्रतिमा अलौकिक है और मान्यता है कि दर्शन से कष्ट दूर होते हैं। प्रत्येक वर्ष भव्य रथयात्रा महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है। रथयात्रा में सांप्रदायिक सौहार्द्र भी देखने ही बनता है।
शामली, जेएनएन : जलालाबाद का जैन मंदिर ऐतिहासिक होने के साथ ही श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां पर उत्तर भारत से बड़ी संख्या में जैन समाज के साथ ही अन्य समाजों के लोग भी पहुंचते हैं। भगवान पार्श्वनाथ की लघु पाषाण प्रतिमा अलौकिक है और मान्यता है कि दर्शन से कष्ट दूर होते हैं। प्रत्येक वर्ष भव्य रथयात्रा महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है। रथयात्रा में सांप्रदायिक सौहार्द्र भी देखने ही बनता है। हिदू-मुस्लिम नगर में जगह-जगह रथयात्रा का स्वागत करते हैं।
दिल्ली-सहारनपुर हाईवे पर स्थित कस्बा जलालाबाद ऐतिहासिक नगरी है। आजादी के दीवानों के बलिदान, सांप्रदायिक सौहार्द्र के साथ ही यह धर्मनगरी भी है। जलालाबाद जैन मंदिर के कारण उत्तर भारत में काफी विख्यात है। दरअसल, श्री 1008 पार्श्वनाथ जैन अतिशय क्षेत्र में भगवान पार्श्वनाथ की पांच इंच से कम लघु पाषाण की मूल प्रतिमा अत्यंत प्राचीन हैं। उत्तर भारत के अतिशय क्षेत्रों में जलालाबाद एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां पर भगवान पार्श्वनाथ की लघु पाषाण प्रतिमा मौजूद है। भगवान पार्श्वनाथ की प्राचीन चमत्कारिक प्रतिमा के दर्शन मात्र से जैन श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। बताया जाता है कि सन 1906 से पूर्व जलालाबाद में सैंकड़ों जैन परिवार रहते थे, लेकिन प्लेग की महामारी में काफी लोगों की मौत हो गई। बचे जैन परिवारों ने दूसरे क्षेत्रों में चले गए। यहां केवल जयंती प्रसाद जैन का परिवार ही रह गया।
मंदिर प्राचीन होकर खंडहर बना था। प्राचीन प्रतिमाएं मंदिर के गर्भ गृह में रखी गई थी। रामपुर मनिहारान व आसपास क्षेत्र के जैन समाज मूर्तियों को रामपुर मनिहारन ले गए, लेकिन रात में स्वप्न में वापस जलालाबाद में स्थापित करने की चेतावनी मिली। रामपुर मनिहारन से सकल जैन समाज ने विधिवत मूर्तियों को प्राचीन मंदिर में स्थापित कर क्षमा याचना की। मंदिर जीर्णोद्धार कार्य वर्ष 1960 से शुरू किया गया। पहली रथ यात्रा रामपुर मनिहारन के जैन समाज ने जलालाबाद में भव्य तरीके से निकाली। वर्ष1970 में जैन संत आचार्य विद्यानंद मुनि जी महाराज विहार करते जैन मंदिर पहुंचे थे। उन्होंने क्षेत्र को प्राचीन व अतिशय बताया। महाराज की प्रेरणा से प्राचीन मंदिर व अतिशय क्षेत्र की जीर्णोद्धार भावना आसपास जैन समाज में हो गई। वर्ष 1978 बाद से वार्षिक रथ यात्रा महोत्सव में श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ने लगा। 26 जून 1980 को लघु पाषाण प्रतिमा नवीन वेदी में स्थापित कराई गई। वर्ष 1983 में आयोजित वार्षिक रथ यात्रा में आचार्य शांति सागर जी महाराज की प्रेरणा से नवीन शिखर निर्माण किया गया था। अतिशय क्षेत्र में होम्योपैथिक अस्पताल, त्यागी धर्मशाला, मानस स्तम्भ निर्माण किया गया है। राजस्थान के कुशल कारीगरों ने पत्थरों की नक्काशी से जैन धर्म का सार समझाया है। वर्तमान में रोजाना काफी संख्या में श्रद्धालु उत्तर भारत के कोने-कोने से भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन के लिए आते है।