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अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति को शामली के सपूतों ने लगाई जान की बाजी

शामली का इतिहास शामली के सपूतों की वीरता का गवाह भर ही नहीं है। शामली की वीरांगनाएं भी आजादी की लड़ाई में पीछे नहीं रहीं। 1

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 09:49 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 09:49 PM (IST)
अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति को शामली के सपूतों ने लगाई जान की बाजी
अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति को शामली के सपूतों ने लगाई जान की बाजी

शामली, जेएनएन। शामली का इतिहास शामली के सपूतों की वीरता का गवाह भर ही नहीं है। शामली की वीरांगनाएं भी आजादी की लड़ाई में पीछे नहीं रहीं। 1857 की क्रांति में टोलियां बनाकर उन्होंने गोरी हुकूमत से लोहा लिया और देश के नाम पर प्राण न्योछावर कर दिए। वहीं, क्रांतिकारी चौधरी मोहर सिंह ने गोरों की गर्दन झुका दी थी। अंग्रेजी फौज को मोहर सिंह ने नाको चने चबवा दिए तो यहां की वीरांगनाओं ने भी तलवार की मूठ को हाथों में लेकर मुक्ति का संग्राम छेड़ दिया था।

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दो माह तक तहसील नहीं फटक पाए अंग्रेज

नेतृत्व की अभूतपूर्व क्षमता रखने वाले शामली के चौधरी मोहर सिंह ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया था। उनकी अगुवाई में नौजवानों की अलग-अलग टुकड़ियां अंग्रेजों से मुकाबिल थीं। गोपनीय सूचनाएं एक-दूसरे को देकर क्रांतिकारी, अंग्रेजी फौज पर टूट पड़ते थे। मोहर सिंह ने ही तहसील पर हमला बोलकर उसे अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त करा लिया था। करीब दो महीने तक तहसील पर अंग्रेज फटक नहीं पाए थे।

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रशीद अहमद गंगोही का अहम योगदान

आजादी की लड़ाई में सहारनपुर के रशीद अहमद गंगोही का अहम योगदान रहा। उनकी प्रेरणा से यहां कैराना, थानाभवन और शामली में गोपनीय मंत्रणाएं होती थीं। रणनीति तैयार की जाती थी। देवबंद के रेशमी रूमाल आंदोलन से भी शामली काफी हद तक प्रभावित रहा। आजादी के मतवालों में फूट डालने के लिए अंग्रेजों ने बड़ी कोशिशें कीं, लेकिन वह कामयाब नहीं हुए। रशीद अहमद गंगोही ने अंग्रेजों का गोला-बारूद लूट लिया तो शामली में भी क्रांतिकारी गोरों पर बर्र की तरह टूट पड़े। अंग्रेजों की कब्जे वाली तहसील पर काजियों ने हमला बोला था। यहां तहसीलदार इब्राहीम खां को मौत के घाट उतार दिया गया था।

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शामली की वीरांगनाओं दी कुर्बानियां

आजादी की लड़ाई में शामली की वीरांगनाओं का अहम योगदान रहा है। बसेड़ा गांव की बख्तरी, शामली की इंदर कौर जाट, थाना भवन की हवीबा खातून में तो असीमित नेतृत्व क्षमता थी। जब नौजवान अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे, तो इन वीरांगनाओं ने भी अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। कितनों ने अपने जेवर तक बेचकर आजादी के मतवालों का सहयोग किया। ये वीरांगनाएं हाथों में तलवार और भाले लेकर गोरी हुकूमत की नाक में दम कर दिया था। इन्हीं वीरांगनाओं की फेहरिस्त में मामकौर गड़रिया, राजकौर, रणवीरी, जमीला पठान और शोभा भी थीं। बाद में अंग्रेजों ने इन्हें फांसी पर लटका दिया था।

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आजादी की जंग में उठी लोकगीतों की लहर

आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने देश भक्ति से ओतप्रोत लोकगीतों का भी सहारा लिया था। इनकी टोलियों में गाए जाने वाले गीतों में अंग्रेजों के प्रति ताने-उलाहने होते थे। आजाद भारत में बाद की पीढ़ी उन गीतों को सहेज न सकी। उनका संकलन भी न हो सका। फिर भी जोश और जज्बा भरने में ये गीत बड़े काम के बताए जाते हैं।

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भगत सिंह से मिलने जाते थे नौजवान

जब अंग्रेजी हुकूमत से क्रांतिकारी लोहा ले रहे थे। उस समय भगत सिंह सहारनपुर चौक में चुपके से आते थे। छींके पर जब कद्दू लटका दिया जाता था तो उसका मतलब होता था कि भगत सिंह आ गए हैं। यह सूचना गोपनीय तरीके से शामली में भी पहुंच जाती थी। यहां के नौजवान भगत सिंह से मिलने जाया करते थे।


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