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धरती मां की गोद में जाता है मंदिरों से निकला जल

जल प्रबंधन सीखना है तो शामली के मंदिर इसकी बेहतर मिसाल हैं। यहां जल की एक-एक बूंद को सहेजा जाता है। मंदिर श्री हनुमान टीला और गुलजारी वाला मंदिर में भगवान को अर्पित होने वाले जल का वैज्ञानिक ढंग से संरक्षण किया जाता है। अन्य मंदिरों में भी वाटर हार्वेस्टिग की व्यवस्था की गई है। मंदिरों में नौ देवियों की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 11:28 PM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 11:28 PM (IST)
धरती मां की गोद में जाता है मंदिरों से निकला जल
धरती मां की गोद में जाता है मंदिरों से निकला जल

जेएनएन, शामली। जल प्रबंधन सीखना है तो शामली के मंदिर इसकी बेहतर मिसाल हैं। यहां जल की एक-एक बूंद को सहेजा जाता है। मंदिर श्री हनुमान टीला और गुलजारी वाला मंदिर में भगवान को अर्पित होने वाले जल का वैज्ञानिक ढंग से संरक्षण किया जाता है। अन्य मंदिरों में भी वाटर हार्वेस्टिग की व्यवस्था की गई है। मंदिरों में नौ देवियों की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं।

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मंदिर श्री हनुमान टीला में जलाभिषेक के दौरान अर्पित जल को छह बोरिग के माध्यम से भूमि में पहुंचाया जाता है। भूमि में साफ जल ही जाए इसके लिए भी बेहतर व्यवस्था की गई है। अगर जल में फूल-फल या अन्य सामग्री मिल जाती है तो उसे बाहर कर पहले पानी को साफ किया जाता है। इसके बाद ही वाटर हार्वेस्टिग की जाती है। मंदिर श्री हनुमान टीला प्रबंध समिति के अध्यक्ष सलिल द्विवेदी ने बताया कि मंदिर में वाटर हार्वेस्टिग के लिए छह बोरिग लगाए गए हैं। फूल और पत्ती को गाय के गोबर में मिलाकर खाद तैयार की जाती है। गाय के गोबर से उपले भी बनाए जाते हैं।

वहीं, गुलजरी वाला मंदिर के पुजारी अजय गिरि महाराज ने बताया कि भगवान शिव को होने वाला जलाभिषेक एक कुंड में एकत्र हो जाता है। इसके बाद जल को कुंड में से निकालकर खेतों में प्रवाहित कर दिया जाता है। जल को लेने के लिए काफी संख्या में किसान और नागरिक आते हैं। जलाभिषेक करने आए श्रद्धालुओं से भी स्वच्छता बनाए रखने की अपील की जाती है। फूल और पत्तियों को गाय के गोबर में मिलाकर खाद तैयार की जाती है। जल के कुंड में जाने से पहले ही उसमें से फूल और पत्ती अलग कर ली जाती हैं। इसके साथ ही सिद्धपीठ भाकूवाला मंदिर, सदाशिव महादेव मंदिर और सतीवाला मंदिर में जल संरक्षण के बेहतर उपाय किए गए हैं। इन मंदिरों में भी फूल और पत्ती को गाय के गोबर में मिलाकर उपले और खाद तैयार किया जाता है।


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