घर तो जाने लगे, पर अभी बनाई हुई है दूरी
डा. जगमोहन पेशा निश्चेतक। तैनाती एल-2 कोविड अस्पताल शामली। जिम्मेदारी कोविड अस्पताल में वेंटीलेटर पर भर्ती मरीजों की देखरेख और वेंटीलेटर का सफल संचालन।
शामली, जागरण टीम। डा. जगमोहन, पेशा निश्चेतक। तैनाती एल-2 कोविड अस्पताल शामली। जिम्मेदारी कोविड अस्पताल में वेंटीलेटर पर भर्ती मरीजों की देखरेख और वेंटीलेटर का सफल संचालन। एक माह तक दिन-रात ड्यूटी करने के बाद कोरोना में राहत मिली तो घर-परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिला। कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए वे घर आए तो अब परिवार के साथ समय बिता रहे हैं। बच्चों के साथ छोटे-मोटे खेल खेल रहे हैं तो मनपंसद खाने की भी फरमाइश की जा रही है। हालांकि परिवार के लोग भी खुश है। उनके पिता भी डा. जगमोहन के साथ समय बिता रहे हैं। शुक्रवार को घर का माहौल ही अलग था। स्वजनों के चेहरों पर सुकून था तो डा. जगमोहन के दिल में मरीजों के लिए काम करने की तसल्ली।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में निश्चेतक डा. जगमोहन का कुछ माह पहले सहारनपुर तबादला हो गया था। शामली में कोरोना के मरीज बढ़ने लगे। अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या में भी इजाफा हो गया और अधिकांश को आक्सीजन की जरूरत होती थी। विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण डा. जगमोहन की ड्यूटी शामली के कोविड अस्पताल में ही लगा दी गई। वह बताते हैं कि 29 अप्रैल को वापस शामली आ गए थे। कोरोना से हालात इतने भयावह थे कि थोड़ी फुर्सत होती थी तो भी वह घर नहीं जा पाते थे। परिवार की भी चिता थी। फिलहाल पर सीएचसी शामली के आवासीय परिसर में ही रहते हैं और परिवार में पिता ओमप्रकाश, पत्नी सीमा मोहन, बेटी श्रेया मोहन हैं। वह कोविड अस्पताल में ही एक माह से अधिक समय तक रहे। वीडियो कालिंग से ही परिवार के लोग एक-दूसरे को देखते थे। बेटी को उनकी चिता अधिक होती थी। वह बताते हैं कि दिन में कई-कई बार मरीजों के पास जाना होता है। दो दिन से घर जाना शुरू किया है, लेकिन अभी सभी सदस्यों से दूरी बनाकर रखते हैं। खैर, परिवार के साथ दूर बैठकर ही सही, लेकिन वक्त बिताना काफी अच्छा लग रहा है। पूरा तनाव कुछ ही देर में दूर हो जाता है। अस्पताल की जिम्मेदारी भी संभालनी है और अपना व परिवार का संक्रमण से बचाव भी करना है। ईश्वर से प्रार्थना है कि महामारी से जल्द मुक्ति मिले और स्थिति पूरी तरह सामान्य हो जाए। उनकी पत्नी सीमा ने बताया कि संकट के समय में चिकित्सक की जिम्मेदारी कितनी अधिक बढ़ी, वह खूब समझती हैं। इसलिए कोई शिकवा-शिकायत होने की तो बात ही नहीं है।