इलाज सरकारी अस्पताल में, अल्ट्रासाउंड कराना पड़ रहा प्राइवेट
जननी सुरक्षा जैसी योजनाओं पर स्वास्थ्य विभाग हर साल भारी भरकम बजट खर्च कर रहा है।
रीतेश माथुर, शाहजहांपुर : जननी सुरक्षा जैसी योजनाओं पर स्वास्थ्य विभाग हर साल भारी भरकम बजट खर्च कर रहा है, लेकिन महिला मरीजों के इलाज के लिए उचित व्यवस्था नहीं हो पा रही है। जिला महिला अस्पताल में तीन महीने से रिक्त चल रहे रेडियोलॉजिस्ट के पद पर कोई तैनाती नहीं हुई है, जिस कारण यहां अल्ट्रासाउंड नहीं हो रहे हैं। सबसे ज्यादा परेशानी यहां आने वालीं गर्भवती महिलाओं को हो रही है। उन्हें प्राइवेट अल्ट्रासांड कराना पड़ रहा है। कई बार इमरजेंसी में पुरुष अस्पताल में ले जाने की नौबत तक आती है। जिससे न खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा दिक्कत उन महिलाओं को होती है जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती। रुपयों की व्यवस्था न हो पाने के कारण प्राइवेट इलाज कराने में सक्षम नहीं होतीं।
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महिला जिला अस्पताल के रेडियोलॉजिस्ट डॉ. राजीव रंजन का तबादला तीन माह पहले बरेली हो गया था। उस समय आदेश किए गए थे कि जब तक यहां पर रोडियोलॉजिस्ट की व्यवस्था नहीं हो जाती है वह सप्ताह में दो दिन प्रसूताओं का अल्ट्रासाउंड करेंगे। लेकिन वह जाने के बाद वापस नहीं आए। ऐसे में प्रसूताओं को मजबूरी में प्राइवेट में अल्ट्रासाउंड कराना पड़ता है।
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इमरजेंसी में पुरुष अस्पताल में होता है अल्ट्रासाउंड
जब किसी प्रसव पीड़िता के साथ इमरजेंसी होती है तो पुरुष अस्पताल में उसका अल्ट्रासाउंड कराना पड़ता है। रोजाना करीब ऐसी चार से पांच महिलाओं का आंकड़ा रहता है।
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गर्भवती का कम से कम तीन बार होता है अल्ट्रासाउंड
पहला- साढ़े तीन माह में
दूसरा- सात माह में
तीसरा- प्रसव से कुछ समय पहले
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महिला ओपीडी
- 150 से 200 महिलाओं की ओपीडी
- 30 से 40 महिलाओं को अल्ट्रासाउंड की होती है जरूरत
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वर्जन:
फोटो: 21 एसएचएन: 28
रेडियोलॉजिस्ट की डिमांड पहले भेजी जा चुकी है। मैंने अभी कार्यभार संभाला है। प्रयास किए जाएंगे कि प्रसूताओं का अल्ट्रासाउंड अस्पताल में ही हो। इसके लिए फिर से डिमांड भेजी जाएगी।
- डॉ. अनीता धसमाना, सीएमएस, महिला अस्पताल