हापुड़ की पटाखा फैक्ट्री ने छीनी भंडेरी गांव के 10 लोगों की जान
जेएनएन, शाहजहांपुर : हापुड़ में अवैध रूप से संचालित पटाखा फैक्ट्री ने कांठ के भंडेरी गांव के 10 लोगों की जान छीन ली। जबकि 18 लोग गंभीर रूप से झुलस गए। जो जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे है। गांव में कोहराम की मच गया है। हादसे के बाद भंडेरी गांव से सभी के स्वजन शनिवार रात में ही हापुड़ के लिए रवाना हो गए थे। प्रशासन व पुलिस के अधिकारी गांव पहुंचकर मृतकों के स्वजन को ढांढस बंधाने का प्रयास कर रहे है।
कांट थाना क्षेत्र के भंडेरी गांव के 41 लोग हापुड़ की पटाखा फैक्ट्री में मजदूरी करने गए थे। जिसमे 16 लोग तीन जून को ही वहां गए थे। शनिवार दोपहर बाद फैक्ट्री में आग लगने से गांव के प्रेमपाल, उनके चचेरे भाई छोटे, छविराम, राघवेंद्र, अनूप, भूरे उनके भतीजे सर्वेश, रामू, नूर हसन उनके चचेरे भाई इरफान की मृत्यु हो गई। शनिवार देर रात हादसे ही जानकारी होने पर सभी के स्वजन हापुड़ के लिए रवाना हो गए। गांव शनिवार से ही मातम छाया हुआ है।
यह लोग हुए झुलसे
आग लगने से जो लोग झुलसे है उसमे अंकुर, राजेश, सनोज, मनोज, सोनेलाल, अमित, प्रदीप, शकूर, अपसाना, युसूफ, चांदतारा, सायदा, बबलू, चांद मियां, मुस्तकीम व बिटिया आदि शामिल है।
दोपहर तक नहीं ली गई सुध
रविवार दोपहर तक प्रशासन व पुलिस के अधिकारी गांव नहीं पहुंचे। कुछ लोगों ने वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना व डीएम उमेश प्रताप सिंह को फोन किया। जिसके बाद प्रशासनिक व पुलिस के अधिकारी गांव पहुंचे।
किसी का छिना सुहाग, किसी की सूनी हुई गोद
सूनी गलियां घर के बाहर समूह बनाकर बैठे लोग, सन्नाटे को चीरती विलाप की चित्कारे। यह माहौल था रविवार को कांट के भंडेरी गांव का। हापुड में पटाखा फैक्ट्री में हुए धमाके ने किसी का सुहाग छीन लिया तो किसी की गोद सूनी कर दी। हर कोई अपनी किस्मत को कोस रहा था। दरअसल बेहद कम उम्र में ही ज्यादातर लोग पेट की खातिर कमाने के लिए घर से निकल पड़े थे। भंडेरी गांव निवासी अनिल कुमार अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। माता-पिता की मौत होने के बाद कम उम्र में उन पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। लेकिन हादसे ने पांच बच्चों के सिर से पिता का साया छीन लिया। जिनकी जिम्मेदारी पत्नी बिटाना पर आ गई।
बहनों का छिन गया सहारा
नूरहसन पिता इंसान व मां रेश्मा की पहले ही मौत हो चुकी है। ऐसे में महज 17 साल की उम्र से ही नूरसहन मजदूरी करने लगे। ताकि दोनों बहन नाजरीन व नसीमा का सहारा बन सके। लेकिन हादसे ने उनका यह सहारा भी छीन लिया।
एक भाई की मृत्यु, दूसरा झुलसा
राघवेंद्र अपने भाई सोने लाल के साथ मजदूरी करने के लिए हापुड गए थे। जहां राघवेंद्र की हादसे में मृत्यु हो गई। जबकि सोने लाल गंभीर रूप से झुलस गए। सोने लाल के दो बच्चे है। जबकि राघवेंद्र की अभी शादी नहीं हुई थी। उनकी मां मां शकुंतला देवी की पहले ही मृत्यु हो चुकी।
सात साल बाद रामू को मिलने जा रहा था संतान सुख
रामू की शादी सात साल पहले पूनम से हुई थी। काफी मन्नतों के बाद सात माह पहले ही पूनम गर्भवती हुई। जिससे रामू बहुत खुश थे। बच्चे के जन्म के बाद धूमधाम से दावत कर सके इसके लिए वह 14 दिन पहले ही अपने साथियों के साथ नौकरी करने हापुड़ गए थे। तीन जून को उन्होंने पत्नी से बात करने के लिए अपनी भाभी को फोन किया लेकिन बात नहीं कर सकी। शनिवार देर रात पटाखा फैक्ट्री में धमाके के बाद स्वजन को झुलसने की सूचना मिली थी। पिता दर्शन रात में ही हापुड़ के लिए रवाना हो गए। रविवार को रामू की मुत्यु ही सूचना मिली तो पूनम बेहोश होकर गिर पड़ी। उनके मुंह से सिर्फ एक ही बात नहीं निकल रही थी कि अब आगे का जीवन कैसे कटेगा। रामू दो भाइयों में बड़े थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से परिवार के भरण-पोषण की भी जिम्मेदारी उन्हीं पर थी।
गुमराह करके ले गए थे अनूप को
अनूप 15 साल का उम्र में ही मजदूरी कर अपने पिता राजेश कुमार का हाथ बंटाने लगे थे। राजेश वाहनों का पंचर जोड़ने का काम करते हैं। स्थायी नौकरी की तलाश में 15 दिन पहले अपने एक परिचित के साथ हापुड़ चले गए। राजेश ने बताया कि बेटे को कुछ लोग यह कहकर अपने साथ ले गए थे कि हापुड़ में कोल्ड्रिंग बनाने की फैक्ट्री में काम दिला देंगे। दो दिन पहले अनूप ने घर में फोन किया था। तब उन्होंने बताया था कि यहां पाबंदी बहुत है, फैक्ट्री के बाहर आसानी से निकलने नहीं दिया जाता है। मां सीमा ने जब खाना खाने की बात पूछी तो अनूप ने रोते हुए फोन काट दिया था। सीमा ने कहा कि यदि पहले पता होता कि पटाखा बनाने वाली फैक्ट्री में बेटा काम करता है तो वह उसे घर बुला लेती।
भड़ेरी गांव में सीओ व थाने की पुलिस भेजी गई है। हापुड़ के अधिकारियों से भी लगातार संपर्क साधा जा रहा है। देर रात या फिर सोमवार सुबह तक शव आने की उम्मीद है।
एस आनंद, एसपी