अर¨वद बाजपेयी ने निभाया गुरुतर दायित्व
माता, पिता और गुरु.. यह वाकई शुभ¨चतक होते हैं।
शाहजहांपुर : माता, पिता और गुरु.. यह वाकई शुभ¨चतक होते हैं। जो अपने बच्चे व शागिर्द के लिए जान तक की परवाह नहीं करते। बिटिया को न्याय दिलाने के लिए उसके मां - बाप ने खुद को दांव पर लगा दिया। चार साल आठ माह के लंबे संघर्ष के बाद बिटिया को न्याय दिलाकर हौसला बढ़ाया । सरस्वती शिशु मंदिर के प्रधानाचार्य अर¨वद बाजपेई ने गुरुतर दायित्व निभाया। उन्होंने भी जान की परवाह नहीं। शहर की बेटी व स्कूल की शिष्या के लिए प्रलोभन को भी ठुकरा दिया। धमकी की भी परवाह नहीं की। लिफाफे में भेजे गए कारतूस से भी नहीं डरे।
अर¨वद बाजपेई यदि आसाराम के गुर्गों से डरकर मनमाफिक टीसी जारी कर देते तो न्याय की जंग मुश्किल हो जाती। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े अर¨वद बाजपेई के संस्कारों ने उन्हें आसाराम के गुर्गों के दबाव में नहंी आने दिया। न्यायालय से बिटिया को न्याय मिलने के बाद अब हर कोई अर¨वद बाजपेई की ईमानदारी, हिम्मत और गुरुतर दायित्व की दुहाई दे रहा है।
बिटिया के पिता ने तैयार किए थे भक्त, बनाया आश्रम
शाहजहांपुर : सात एकड़ में आश्रम का निर्माण व जिले में हजारों भक्तों को तैयार करने में पीड़िता के पिता का ही अहम योगदान रहा। डेढ़ दशक पूर्व बरेली में दीक्षा लेने के बाद पीड़िता के पिता ने नियमित सत्संग के साथ ही आसाराम का सत्संग भी कराया। इससे हजारों भक्तों की फौज खड़ी हो गई। दुष्कर्म की घटना के बाद यहीं भक्त प्रथम चरण में परेशानी का कारण भी बने। हालांकि हकीकत जानने के बाद 90 फीसद के करीब भक्तों ने आसाराम का साथ छोड़ दिया, लेकिन दस फीसद फिर भी अंधभक्त बने हुए हैं।