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वानर वास पर बना होटल, शहर में बंदरों का आतंक

आस्था से जुड़े बंदर इन दिनों जनमानस के लिए समस्या बने हुए है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 10:44 AM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 10:44 AM (IST)
वानर वास पर बना होटल, शहर में बंदरों का आतंक

शाहजहांपुर : आस्था से जुड़े बंदर इन दिनों जनमानस के लिए समस्या बने हुए है। इसके लिए जिम्मेदार शासन व प्रशासन है। दशक पूर्व बंदरों का आंतक देख गुर्री उचौलिया में वानस वास केंद्र का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। लेकिन विभाग ने जनहित व प्राणिहित के प्रस्ताव को दरकिनार कर पार्क व होटल प्रस्तावित कर दिया। वर्तमान में प्रस्तावित वानर वास केंद्र स्थल पर पार्क बना है। यहां झूले भी लगाए गए हैं। विभाग के टेंडर पर होटल भी चल रहा है।

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डीएफओ वीसी तिवारी ने तैयार किया था प्रस्ताव

मुख्य वन संरक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए वीसी तिवारी वर्ष 2005 से 2010 तक यहां प्रभागीय वन अधिकारी रहे। उन्होंने बंदरों की समस्या देख गुर्री उचौलिया में वानर वास केंद्र का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा था। लेकिन बजट अभाव में अमल नहीं हो सका। उनके तबादला के बाद प्रस्ताव रद्दी की टोकरी में चला गया। जिस स्थल पर उन्होंने वानर वास केंद्र प्रस्तावित किया था वहां वर्तमान में होटल व पार्क है।

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500 से 1000 रुपये में पकड़े जाते बंदर

वाइल्ड लाइफ में पंजीकृत मथुरा के कुछ एनजीओ प्रदेश भर में बंदर पकड़ते हैं। प्रति बंदर वह 500 से 1000 रुपये का शुल्क लेते हैं। झुंड में बंदर पकड़ने का ठेके की दशा में शुल्क कम हो जाता है।

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डीएफओ ने जारी की एडवाइजरी

प्रभागीय वन अधिकारी राजकुमार त्यागी ने जागरण अभियान में बंदरों के आतंक का खुलासा होने के बाद समस्या को गंभीरता से लिया। मंगलवार की शाम उन्होंने एडवाइजरी जारी की है। डीएफओ ने बंदरों के पकड़ने की अनुमति के लिए भी प्रयास शुरू कर दिए है।

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डीएफओ की एडवाइजरी पर एक नजर

- घरों व गलियों में बंदरों की घुसपैठ रोकने का सामूहिक प्रयास करें।

- खाने पीने के सामान को बंदरों की पहुंच से दूर रखें।

- ढक्कन युक्त कूड़ेदान का प्रयोग करें, खुले कूड़ेदान में बंदर खाने का सामान खोजते हैं।

- घरों में बचा हुआ खाना एवं सब्जी की छीलन आदि को खुले में न डालें।

- कूड़े को नगर निगम की ठेलियों में ही डाले। बचा खाना इधर उधर न फेंके।

- आबादी के अंदर बंदरों को खाना ना खिलाएं, इससे बंदर आकर्षित होते हैं।

- धार्मिक स्थलों के पास भी बंदरों को खाने का सामान व प्रसाद ने दें, इससे बंदर गिध जाते हैं।

- शादी व उत्सवों के बचा खाना जरूरतमंदों को दें, बंदरों को सिर्फ जंगल में ही खिलाएं।

- विद्यालयों में एमडीएम के बचे भोजन, जूठन को भी न फेंके, इससे बंदर बच्चों के लिए खतरा बन सकते हैं।

- बाग से फल व खेत से सब्जियों को उचित समय पर तोड़ लें, ताकि बंदर वहां डेरा न जमा सकें।

- खिड़की व दरवाजों पर जाली जरूर लगवाएं, ताकि बच्चे सुरक्षित रहें।

- बाजार से सामान प्लास्टिक की थैलियों के बजाय कपड़े के थैले में लाएं। ताकि बंदर नुकसान न पहुंचा सके।

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रेंजर व तहसीलदार भी दे सकते बंदर पकड़ने की अनुमति

शासन ने उत्पाती बंदरों को पकड़ने की अनुमति के लिए वन क्षेत्राधिकारी से ऊपर के सभी वन अधिकारियों तथा तहसीलदार को भी अधिकृत किया है। इसके अलावा कोई अन्य अधिकारी अनुमति नहीं दे सकता। लेकिन अनुमति पीड़क बंदरों तक ही सीमित है। झुंड में बंदर पकड़ने की अनुमति के लिए वन्य जीव मुख्य संरक्षक को अनुमति लेनी पड़ती है।

राजकुमार त्यागी, प्रभारी डीएफओ


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