15 लाख करोड़ लीटर जलदोहन रोका
किसानों के एक निर्णय ने तराई की सूरत ही नहीं भविष्य बदल दिया है। हम बात कर रहे हैं साठा धान की खेती पर प्रतिबंध की।
नरेंद्र यादव, शाहजहांपुर : किसानों के एक निर्णय ने तराई की सूरत ही नहीं भविष्य बदल दिया है। हम बात कर रहे हैं साठा धान की खेती पर प्रतिबंध की। गोमती नदी की गोद में बसी पुवायां तहसील में 70 से 80 हजार हेक्टेयर साठा धान की खेती होती थी। अप्रैल से जून के बीच भीषण गर्मी में होने वाली फसल की सिचाई के लिए किसानों को लगातार नलकूप चलाना पड़ता था। इससे भूगर्भ जलस्तर प्रतिवर्ष दो फुट नीचे जाने लगा। रसूलपुर समेत करीब आधा दर्जन गांवों के नलों से पानी आना बंद हो गया। बोरिग भी दगा देने लगी। शिकायत पर प्रशासन ने साठा धान की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे भूगर्भ जलस्तर में भी इजाफा हुआ है और खेती का तरीका बदलने से किसानों की आय में भी। अब किसान भी साठा पर प्रतिबंध को भविष्य के लिए हितकर मानने लगे है।
क्या है साठा धान
साठा धान की ही किस्म है। जो गर्मी के दिनों में साठ दिन के भीतर तैयार होती है। ग्रीष्म ऋतु की वजह से इस फसल के लिए किसानों को भूगर्भ जल से ही सिचाई करती पड़ती है। पंजाब समेत कई प्रांतों में साठा बैन है। शाहजहांपुर जिला प्रशासन ने भी साठा धान की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया है।
यह हुआ प्रतिबंध से फायदा
एक हेक्टेयर में करीब 60 क्विटल धान की पैदावार होती है। इससे करीब 40 क्विटल चावल अर्थात चार हजार किलोग्राम चावल का उत्पादन होता है। विज्ञानियों के अनुसार एक किलो साठा धान के लिए करीब 5300 लीटर भूगर्भीय जल की जरूरत होती है। इस तरह एक हेक्टेयर में करीब 2.12 करोड़ लीटर पानी खर्च हो जाता है। जनपद में करीब 80 हजार हेक्टेयर में साठा की खेती रोककर प्रशासन ने करीब 15 से 16 लाख करोड़ लीटर पानी दोहन रोक दिया है। साथ में पेस्टीसाइड का प्रयोग रुकने से जमीन भी जहरीली होने से बच गई। साठा धान में लगातार सिचाई से भूगर्भ जलस्तर गिर रहा था। कई गांवों में तो नलों से पानी आना बंद हो गया। साठा की खेती पर प्रतिबंध से किसानों ने विकल्प के रूप में तरबूज, खरबूजा, मक्का, भिडी, लोबिया आदि की खेती शुरू कर दी। इससे किसानों कमाई भी बढ़ी और, भूगर्भ जलस्तर भी।
डा. सतीश चंद्र पाठक,जिला कृषि अधिकारी गेहूं कटाइ के बाद साथ मार्च अप्रैल से साठा धान की फसल की जाती है। जून में साठा काटकर सामान्य धान की पौध रोप दी जाती। इससे बीमारियां का चक्र टूटता नहीं। अन्य फसलों पर भी कीट प्रकोप रहता है। साठा पर प्रतिबंध से करीब 100 करोड़ पेस्टीसाइड बचा है। जिससे जमीन भी जहरीली हो रही थी।
डा. शिव शंकर गौतम, कृषि रक्षा अधिकारी सामान्य धान की खेती में एक किलो चावल के उत्पादन में करीब तीन हजार लीटर पानी खर्च होता है, जबकि एक किलो साठा धान के चावल के उत्पादन में 5000 से 5500 लीटर पानी लगता है। गर्मियों में साठा की खेती की भूगर्भीय जल से ही सिचाई होती है। अब साठा धान पर प्रतिबंध से 15 लाख करोड़ लीटर पानी को दोहन होने से बच गया है।
डा. नरेंद्र प्रसाद गुप्ता, प्रभारी अधिाकरी कृषि विज्ञान केंद्र शाहजहांपुर साठा पर प्रतिबंध से भूगर्भ जलस्तर बढ़ने लगा है। मैंने भी साठा की जगह 12 एकड़ में मक्का की खेती की। पैदावार भी अच्छी हुई। लेकिन मक्का का रेट अच्छा नहीं मिल सका। प्रशासन को फसलों के उचित मूल्य पर भी ध्यान देना चाहिए।
हरिचरन सिंह, कृषक इंसेट फैक्ट फाइल
- 4.19 लाख किसान है जिले में
- 2.65 लाख हेक्टेयर सामान्य धान की खेती
- 80 हजार हेक्टेयर में हो रही थी साठा की खेती
- 15 लाख करोड़ लीटर से अधिक रुका साठा पर प्रतिबंध से जलदोहन
- 100 करोड़ का पेस्टीसाइड भी बचा