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सिध से आए 12 परिवारों ने मेहनत व मेधा से देश की समृद्धि में बंटाया हाथ

हाथ खाली था। लेकिन सभ्यता व संस्कृति की थाती साथ थी। घर छूटा माटी छूटी। लेकिन पुरखों की कहानी में सुनी यादें अभी भी ताजा है। हम बात कर रहे हैं सिधी समाज की। 1947 से 1953 के बीच 12 परिवार सिध प्रांत छोड़ शाहजहांपुर आए। सभी ने मेधा मेहनत व ईमानदारी से देश की समृद्धि व निर्माण में अहम योगदान किया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 01:22 AM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 01:22 AM (IST)
सिध से आए 12 परिवारों ने मेहनत व मेधा से देश की समृद्धि में बंटाया हाथ
सिध से आए 12 परिवारों ने मेहनत व मेधा से देश की समृद्धि में बंटाया हाथ

जेएनएन, शाहजहांपुर : हाथ खाली था। लेकिन सभ्यता व संस्कृति की थाती साथ थी। घर छूटा, माटी छूटी। लेकिन, पुरखों की कहानी में सुनी यादें अभी भी ताजा है। हम बात कर रहे हैं सिधी समाज की। 1947 से 1953 के बीच 12 परिवार सिध प्रांत छोड़ शाहजहांपुर आए। सभी ने मेधा, मेहनत व ईमानदारी से देश की समृद्धि व निर्माण में अहम योगदान किया। आगमन के दशक भीतर ही आठ परिवार पलायन भी कर गए। लेकिन वर्तमान में 22 परिवार जनपद में सिधी परिवार की अहम पहचान बने हुए है।

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चार ईंट भट्ठा से प्रतिमाह चौबीस लाख ईंट उत्पादन वाला कालानी परिवार के प्रकाश कालानी समाज के मुखिया है। वह पूज्य सिधी पंचायत सभा के अध्यक्ष के रूप में समाज को दिशा देने के साथ बाबा विश्वनाथ जीर्णोद्धार समिति सचिव के रूप में समाज सेवा में सक्रिय है। ठाकुरदास राजनी की सुपुत्री मधु राजानी हैरिेटेज आर्किटेक्ट के रूप में देश की धरोहर को सरंक्षित करने में अहम भूमिका निभा रही है। अमेरिका में सम्मानित हो चुकी मधु राजानी की दर्जन भर किताबे भी प्रकाशित हो चुकी हैं। पर्यटन व वास्तुकला के क्षेत्र के विकास को बढ़ावा दे रही है। बंगलूरू में रेनू लता राजानी जनपद की पहचान है। सिधी समाज के लोग सभ्यता संस्कृति के साथ सिधी भाषा को बचा रहे है। इसके लिए घरों में सिधी भाषा बोलते हैं। समाज के त्योहारों को भी धूमधाम से मनाया जाता है।

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फोटो 12 एसएचएन 25 हमारे दादा आसूदा मल सिध प्रांत के सुक्कुर के जमीदार थे। पिता द्वीपचंद कालानी ने ईंटा भट्ठा का कारोबार स्थापित किया। 1947 में भारत पाक बंटवारे में सिघ प्रांत का पाकिस्तान में विलय होने पर दादा और पिताजी शाहजहांपुर आ गए। यहां सिध प्रांत में छोड़ी गई संपत्ति के बदले 26 घर मिले। जिन्हें पंजाबियों को दे दिया, खुद चौक में घर बना लिया। 1949 में ईंट भट्ठा लगा दिया, जो नई तकनीक का पहला भट्ठा था। पिता जी ने शिव प्रसाद सेठ के साथ मिलकर बाबा विश्वनाथ मंदिर, बनखंडी आदि मंदिरों का निर्माण कराया। करीब दस साल तक वह बाबा विश्वनाथ मंदिर जीर्णोद्धार समिति के अध्यक्ष रहे। इसके बाद मुझे भी यह दायित्व दिया गया। वर्तमान में मंदिर कमेटी में सचिव का दायित्व निभा रहा हूं। परिवार बढ़ने पर चार भटठे लगवाए, जिनसे प्रतिमाह चौबीस लाख ईंट का उत्पादन होता है।

प्रकाश कालानी अध्यक्ष पूज्य सिधी पंचायत शाहजहांपुर

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फोटो 12 एसएचएन 27

पिता ठाकुरदास राजानी और मां नीता राजानी के संघर्ष को देखा। चार बहनों को उच्च शिक्षा दिलाई। भाई को व्यापार के गुर सिखाए। विरासत में मिले मेहनत व ईमानदी के संस्कार से देश की धरोहर को संरक्षित करने में अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। वास्तुकला सरंक्षण में विशेषज्ञता सहित वास्तुकला निष्णात की उपाधि अर्जित भी प्राप्त की है। हैदराबाद समेत देश की पुरानी इमारतों के संरक्षण तथा लघु चित्रकला पर कई किताबे लिखी है। एक देश की संस्कृति को दूसरे देश की संस्कृति के आदान प्रदान के लिए दक्षिण एशिया से इंटरनेशनल विजिटर लीडरशिप प्रोग्राम के लिए 2012 में सम्मानित भी किया गया।

मधु राजानी हरिटेज आर्किटेक्ट फोटो 12 एसएचएन 30

भारत पाक बंटवारे का दर्द पिता भगवानदास से सुना है। 1947 में बंटवारे में पिता कुछ दिन खरैतल राजस्थान रहे। परिवार बिछड़ गया था। वहां बाबा का स्वर्गवास होने पर नौसारी महाराष्ट् चले गए। बिछुड़े परिवार को पिता जी ढूंढ़ते रहे। 1953 में शाहजहांपुर आ गए। यहां परिवार के ही आसूदा मल मिल गए। शुरूआत में पिता जी पापड़ और फिर सब्जी बेची। फिर औरंगाबाद मैगलगंज खीरी में आटा चक्की लगाई। ईंट भट्ठा पर मुंशीगिरी का काम किया। 2018 में रेडीमेड का कार्य शुरू दिया। अब परिवार ने बैग बनाने का कारखाना भी लगा लिया है। दरअसल मेहनत ईमानदारी की जो सीख मिले उसे संजोए रखा।

बालकिशन रोहरा, महामंत्री पूज्य सिधी पंचायत सभा

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1947 से 1948 तक 12 सिधी परिवार शाहजहांपुर में आए थे। वर्तमान में 22 परिवार शहर में है। हमारी सभ्यता सनातन धर्म की शान है। नव संवत्सर पर हम चेटीचंड पर्व झूलेलाल जयंती मनाते हैं।

सचिन कालानी

फोटो 12 एसएचएन 26

भारतीय संस्कृति के उत्थान में सिधी समाज का योगदान रहा है। हालांकि सिधी भाषा विलुप्ति के कगार पर है। नई पीढ़ी संस्कृति से जुड़ी रहे। सिधी भाषा में चलन में रहे। इसके लिए पूरा समाज प्रयासरत है।

जितेंद्र राजानी फोटो 12 एसएचएन 29

सिधी समाज ने अपनी मेहनत व ईमानदारी से तिनके से ताज का सफर तय किया है। कुछ लोगों की धारणा है कि सिधी पाकिस्तानी है। उन्हें बताना चाहूंगा कि सिधी अखण्ड भारत का निवासी है।

सौरभ कुमार जेठवानी


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