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आदि काल से सूर्योपासना की अनुपम परंपरा

अटूट आस्था से छठ में मनोकामनाओं की पूíत से विश्वास की अनुपम पंरपरा कायम है। महापर्व की कई कथाएं प्रचलित हैं। सूर्योपासना प्राचीन काल से चली आ रही है। छठदेवी प्रकृति देवियों का प्रधान अंश हैं। मुख्यत: बिहार प्रांत में माताओं द्वारा संतान के लिए किया जाने वाला सूर्य षष्ठी पर्व धीरे-धीरे पूर्वांचल का महापर्व बन गया है। इसे डाला छठ, लोकपर्व के नाम से भी जाना जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 10:34 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 10:34 PM (IST)
आदि काल से सूर्योपासना की अनुपम परंपरा
आदि काल से सूर्योपासना की अनुपम परंपरा

संतकबीर नगर : अटूट आस्था से छठ में मनोकामनाओं की पूíत से विश्वास की अनुपम पंरपरा कायम है। महापर्व की कई कथाएं प्रचलित हैं। सूर्योपासना प्राचीन काल से चली आ रही है। छठदेवी प्रकृति देवियों का प्रधान अंश हैं। मुख्यत: बिहार प्रांत में माताओं द्वारा संतान के लिए किया जाने वाला सूर्य षष्ठी पर्व धीरे-धीरे पूर्वांचल का महापर्व बन गया है। इसे डाला छठ, लोकपर्व के नाम से भी जाना जा रहा है। भगवान भाष्कर के प्रति भक्तों के अटल आस्था का अनूठा पर्व है छठ पूजा है। प्राचीन धाíमक मान्यताओं के अनुसार छठ देवी भगवान सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। मानना है कि भगवान राम और माता सीता ने रावण वध के बाद ऋषि के कहने पर काíतक शुक्ल षष्ठी को उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की और अगले दिन यानी सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर आशीर्वाद प्राप्त किया। एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ की शुरुआत महाभारत काल में हुई। द्रौपदी द्वारा सूर्य उपासना करने का उल्लेख है जो अपने परिजनों के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना के लिए नियमित रूप से यह पूजा करती थी। प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने विवाह से पूर्व कर्ण के रूप में पुत्र दिया था। सूर्यपुत्र कर्ण भी यह पूजा करते थे। वे अंग प्रदेश यानी वर्तमान बिहार के भागलपुर के राजा थे। ---------

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प्रकृति से जुड़ी मां देवसेना

माता दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री ये पांच देवियां संपूर्ण प्रकृति कहलाती हैं। इन्हीं के प्रधान अंश को माता देवसेना कहते हैं। प्रकृति देवी का छठवां अंश होने के कारण माता देवसेना को षष्ठी माता के नाम से जाना जाता है। मां संसार के सभी संतानों की जननी और रक्षक है।

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आदि शंकराचार्य ने किया था प्रेरित

आचार्य गौरी शंकर शास्त्री के अनुसार शाक्य द्वीपीय ब्राह्मणों को सूर्य पूजा के विशेषज्ञ होने के कारण राजाओं ने आमंत्रित किया। ऋग्वेद में पूजा का महात्म्य मिलता है। द्वापर में कुंती व कर्ण ने सूर्यदेव की आराधना कर कृपा प्राप्त किया। आचार्य रमेश चंद्र दूबे के अनुसार ब्रह्मवैर्वत्व पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत व रानी मालिनी ने संतान के लिए पूजन किया था। मृत शिशु की प्राप्त होने पर जीवित करने के लिए व्रत किया था। भगवान की मानस पुत्री देव सेना की कृपा से संतान की प्राप्त हुई। यह व्रत षष्ठी युक्त सप्तमी पर किया जाता है। आदि शंकराचार्य ने सूर्य पूजा के लिए प्रेरित किया था। सूर्य पूजा सदियों से हो रही है।

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अभीष्ठ फल के लिए सूर्य की उपासना

- लोक कल्याण एवं अभीष्ठ फल प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य के उपासना की परंपरा वर्षो से चली आ रही है। सतयुग में पूजन का जहां वर्णन मिलता है, वहीं त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने माता सीता के साथ व्रत रखकर पूजन किया। इसी दिन गायत्री का जन्म व गायत्री मंत्र का विस्तार माना जाता है। माता कुंती द्वारा सूर्य उपासना व महाराजा कर्ण के सूर्य पूजन, महाभारत काल के दौरान द्रौपदी द्वारा वनवास में राजपाट की पुन:प्राप्ति व पुत्र कामना के लिए सूर्योपासना का वर्णन मिलता है।


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