सूखने के कगार पर पोखरे, जल संकट गहराने की आशंका
संतकबीर नगर जल ही जीवन है। इस स्लोगन की महत्ता हम सब समझते हैं लेकिन जब जल संरक्षण की बातें सामने आती है तो लोग नजरअंदाज करते बरबस दिख जाते। नदियों तालाबों कुंओं और नहरों समेत कई अन्य जल स्त्रोतों का खासा ख्याल रखना गुजरे जमाने की बातें हो गई।
संतकबीर नगर: जल ही जीवन है। इस स्लोगन की महत्ता हम सब समझते हैं लेकिन जब जल संरक्षण की बातें सामने आती है तो लोग नजरअंदाज करते बरबस दिख जाते। नदियों, तालाबों, कुंओं और नहरों समेत कई अन्य जल स्त्रोतों का खासा ख्याल रखना गुजरे जमाने की बातें हो गई। आधुनिकता में जाने -नजाने में कहीं न कहीं जल की बर्बादी हो रही है। भूमिगत जल के दोहन की स्थिति नहीं रुकने से एक बड़ी आबादी जल संकट से जूझने को मजबूर है।
सामान्य से बहुत कम वर्षा का होना वहीं, भू-गर्भीय जल का दोहन लगातार बढ़ता ही गया। ये दोनों बातें इस साल जानलेवा साबित हो रही हैं। अप्रैल के महीने में ही यहां पानी पाताल चला गया है। दर्जनों तालाब सूख गए और नदियां भी लगातार सूखती ही जा रही हैं। तपती भूमि पर पानी की बूंदे बरसने लगे।
बखिरा क्षेत्र की अधिकांश ग्राम सभाओं में जल संचयन के उद्देश्य से खोदे गए आदर्श जलाशयों की स्थिति बदहाल है। तेज धूप से पोखरे सूखने लगे हैं। सिहोंरवा, बखिरा आदि स्थानों पर पोखरा सूखने के बाद भी प्रशासन स्तर पर कोई ठोस कारवाई नहीं की जा रही है। जिसके चलते जलाशयों का अस्तित्व समाप्त होता नजर आ रहा है। ऐसे में परिणाम जल संकट दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। जल के बिना जीवन की परिकल्पना करना बेमानी है।
जल मनुष्य के लिए ही नहीं समस्त प्राणी, पेड़ पौधों के लिए जरूरी है। धरा पर जल नहीं होगा तो जीवन भी नहीं होगा। बोरिग अथवा नलकूपों के माध्यम से अत्यधिक पानी निकालकर हम कुदरती भूगर्भ जल भंडार को लगातार खाली कर रहे हैं। शहरों में कंक्रीट का जाल बिछ जाने के कारण बारिश के पानी में रिसकर भूगर्भ में पहुंचने की संभावना कम होती जा रही है। इन परिस्थितियों में हम वर्षा के जल को भूगर्भ जल श्रोतों में पहुंचाकर जलस्तर को बढ़ाया जा सकता है। वर्षा जल को एकत्रित करने की प्रणाली चार हजार वर्ष पुरानी है। इस तकनीक को आज वैज्ञानिक मापदंडों के आधार पर फिर पुनर्जीवित किया जा सकता है।