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पक्का पुल के लिए धरने को धार दे रही बेटियां

संतकबीर नगर : कठिनइया नदी के असनहराघाट पर पक्का पुल बनाने की मांग को लेकर न केवल पुरूष व महिलाएं अपि

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Sep 2018 12:19 AM (IST)Updated: Sat, 22 Sep 2018 12:19 AM (IST)
पक्का पुल के लिए धरने को धार दे रही बेटियां
पक्का पुल के लिए धरने को धार दे रही बेटियां

संतकबीर नगर : कठिनइया नदी के असनहराघाट पर पक्का पुल बनाने की मांग को लेकर न केवल पुरूष व महिलाएं अपितु स्कूल-कालेज में पढ़ने वाली बेटियां भी धरने को धार दे रहीं हैं। ये सोच रही हैं कि शायद उनके द्वारा धरने दिए जाने से सांसद, विधायक व अन्य जनप्रतिनिधि व जिले के आला अधिकारियों का दिल पसीजे। आंदोलन की गूंज शासन तक पहुंचाने के लिए बेटियां यह पहल कर रही हैं ताकि किसी तरह यहां पर पक्का पुल बन जाए और स्कूल-कालेज जाने में उन्हें आसानी हो सकें। यही कारण है कि यहां पर पक्का पुल बनाने के लिए धरना और उपवास का कार्यक्रम लगातार 52 तक सफलतापूर्वक चला। इसमें महिलाओं की सहभागिता पुरुषों की तुलना में अधिक देखी गई।

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कोतवाली खलीलाबाद के पश्चिम सीमा पर स्थित राजस्व ग्राम असनहरा में वर्तमान में 100 से अधिक परिवार हैं, इनकी जनसंख्या लगभग 800 है। इसमें राजभर,कुर्मी, कहांर, लोहार और तेली जाति के गरीब परिवार शामिल हैं। गरीबी के बावजूद इन परिवारों की बेटियां हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा के लिए मुंडेरवा स्थित गन्ना विकास इंटर कालेज मे जाती हैं। इसके इतर असनहरा गांव के लोग नदी पर बने बांस पुल के रास्ते रोज अपने छोटे बच्चों को अंग्रे•ाी माध्यम के स्कूलों में भेजते हैं। छोटे बच्चो को रोज एक बालिग सदस्य स्कूल ले-जाने और लाने के लिए इस बांस वाले पुल को पार करते हैं। असनहरा गांव की किशोरियां दोपहर के 12:30 बजे स्कूल से छुट्टी मिलने के बाद धरनास्थल पर आ जाती हैं। ये अपनी मां के साथ लगातार 52 दिन से पक्का पुल के लिए आवाज बुलंद कर रही हैं।

कक्षा-10 में पढ़ने वाली मनीषा, साधना व सावित्री, कक्षा-11 में पढ़ रही सोनी तथा कक्षा-9 की छात्रा जया ने पूछने पर कहाकि कठिनइया नदी के असनहराघाट के बांस के पुल से वे पैदल 15 मिनट में कालेज पहुंच जाती है। जबकि पक्की सड़क से गोदमवां होकर कालेज पहुंचने में सायकिल से आधा घंटा से अधिक समय लग जाता है। सभी के पास साइकिल भी नहीं हैं। इसलिए वे समय से बचाने के लिए इस बांस के पुल से विद्यालय जाती हैं। इस पुल पर कदम रखने पर काफी भय लगता है। नदी में गिरने के भय के बीच वे किसी प्रकार आती-जाती हैं। वे पक्का पुल के लिए चल रहे धरना में इस उम्मीद से भाग ले रहीं हैं कि ताकि यहां के सांसद, विधायक व अन्य जन प्रतिनिधियों व आला अधिकारियों के अलावा सरकार के मंत्रियों तक आवाज पहुंचे। शायद हम बेटियों की आवाज को सुनकर ये पक्का पुल बनाने की पहल शुरू कर दें। यदि यह पुल बन गया तो इस क्षेत्र व गांव की बेटियों के स्कूल-कालेज जाने का स़फर आसान हो जाएगा।

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