दिन दस के व्यवहार में झूठे रंग न भूल..
पचरा स्थित कबीर विज्ञान आश्रम पर तीन दिवसीय संत समागम के दूसरे दिन दूर-दूर से आए कबीरपंथी संतों ने मौजूद लोगों को कबीर साहब के वचनामृतों का रसपान कराया। इस दौरान कार्यक्रम की शुरुआत बुधवार को गुरु आरती के साथ हुई।
संतकबीर नगर: पचरा स्थित कबीर विज्ञान आश्रम पर तीन दिवसीय संत समागम के दूसरे दिन दूर-दूर से आए कबीरपंथी संतों ने मौजूद लोगों को कबीर साहब के वचनामृतों का रसपान कराया। इस दौरान कार्यक्रम की शुरुआत बुधवार को गुरु आरती के साथ हुई।
दूर-दराज से आए विभिन्न संतों ने कबीर साहब के विचारों को अपने माध्यम से प्रस्तुत किया। इसके बाद कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर जौनपुर जिले के बढैया आश्रम से आए संत ने बताया कि कबीर साहब ने हमेशा दिखावेपन का विरोध किया है। उन्होंने आडंबर से दूर रहकर स्वयं को समाज में जीवन जीने का रास्ता बताया है। कबीर साहब के एक प्रसंग की व्याख्या के दौरान उन्होंने कहा कि
ऐसा यह संसार है जैसे सेमल फूल...
दिन दस के व्यवहार में झूठे रंग न भूल...
अर्थात कबीर साहब ने कहा है कि यह संसार सेमर के फूल की भांति है। जो कि दूर से तो बहुत सुहावना दिखता है। लेकिन यदि सेमल के फूल के रंग और रूप को देखकर पक्षी मोहित होकर उस पर मुंह लगाता है तो उसे स्वादहीन और गंध हीन वस्तु मिलती है। जो कि उसके लिए बिलकुल बेकार है। ठीक इसी तरह से इस संसार का स्वभाव है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कबीर साहब ने हमेशा यही कामना की थी कि
सुखिया सब संसार रहे,दुखिया रहे न कोय.. कबीर साहब ने हमेशा सबके सुखी रहने की कामना की है। इस मौके पर आश्रम के महंत सुकृत दास ने बीजक के बारे में बताते हुए कहा कि बीजक कबीर साहब की सबसे प्रमुख रचना है। जिसके तीन भाग हैं। जो कि साखी,सबद और रमैनी से बना हुआ है।
इस मौके पर महंत सुकृत दास, आचार्य साहब गुरु साधु शरण पति साहब गद्दी बढ़ैया जौनपुर, प्रकाश साहब अंबेडकर नगर, पुजारी साहब गोंडा,ज्ञान साहब बस्ती,धर्मदास महाराष्ट्र,स्वामी बनवारी पति दिवाकर अवध धाम,राम सजीवन दास,धनी साहब,संतमत दास,बाबूलाल, लालजी मास्टर एवं पलटू राम मौजूद रहे।
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