एक साथ बिखर रही आरती व अजान की खुशबू
संतकबीर नगर : संपूर्ण विश्व को प्रेम और मानवता का संदेश देने वाली संतकबीर की निर्वाण स्थली मगहर पर र
संतकबीर नगर : संपूर्ण विश्व को प्रेम और मानवता का संदेश देने वाली संतकबीर की निर्वाण स्थली मगहर पर रोजाना सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश फिजाओं में गूंजता है। कबीर चौरा परिसर में स्थित प्राचीन शिव मंदिर में पूजा और कबीर मठ से सटे मस्जिद में अजान होती है। जब मंदिर में शिव भक्त घंटा बजाकर पूजा कर रहे होते है तो उसी समय मस्जिद में अजान के भी स्वर सुनाई देते है। दोनों ध्वनियों से कबीर के आपसी प्रेम का संदेश पूरे विश्व तक जाता है। संत कबीरदास के 620वें प्राकट्योत्सव पर 28 जून को मगहर आ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन का मूलमंत्र भी सबका साथ-सबका विकास ही है।
¨हदू कहो तो मैं नहीं, मुसलमान भी नाहि। पांच तत्व का पूतला, गैवी खैलै माहि।। संत कबीरदास ने अपने निष्पक्ष सत्योपदेश से ¨हदू और मुसलमान दोनों को मिथ्या पक्ष छोड़वाकर सत्य का मार्ग दिखाने का प्रयास किया था। कबीर खड़े बाजार में सबकी पूछे खैर, न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।। उनके इन्हीं विचारों का असर कबीर चौरा मगहर में हर तरफ रख बसा दिखता है। संतकबीर दास की परिनिर्वाण स्थली मगहर के कबीर चौरा परिसर में प्राचीन मस्जिद और शिव मंदिर लगभग 100 मीटर की दूरी पर स्थित हैं। यहां मुसलमान और ¨हदू अपनी धार्मिक रीतियों से पूजा और इबादत करते हैं। यहां हर दिन नमाज और पूजा अनवरत होती चली आ रही है परंतु किसी प्रकार के विवाद सामने नहीं आए। भाइरे, दुई जगदीश कहांते आया। अल्लाह राम करीमा केशव, हरि हजरत नाम धराया। महात्मा के इस प्रकार के विचारों को आत्मसात करने वाले लोगों में भेद की भावना ही नहीं रहती है तो फिर विवादों को स्थान कहां मिलना है। कबीर मठ के महंत विचारदास ने बताया कि मस्जिद का निर्माण कबीरदास के मगहर आने के पहले हुआ था। यहां के शिव मंदिर का जीर्णोद्धार गोरखपुर के तत्कालीन कमिश्नर हाबर्ट द्वारा 1933 में करवाया गया था। उनके बेटे की तबियत अचानक खराब हो गई थी। कहा जाता है कि यहां मन्नत मांगने पर बेटा ठीक हो गया तो उन्होंने पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इसके बाद से समय-समय पर स्थानीय लोगों द्वारा जीर्णोद्धार कराया जाता रहा है। आमी नदी के तट पर स्थित शिव मंदिर पर विभिन्न पर्वों पर श्रद्धालु नदी के स्नान करके शिव को जलार्पण करते हैं। मंदिर पर लगे शिलापट्ट से इसका प्रमाण मिलता है। संतकबीर दास के आने के बाद यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु उनके विचारों को सुनने के लिए आते थे। कबीर को जानने और उनके बारे में अध्ययन करने आने वाले लोगों के लिए यह दोनों धर्मस्थल जनपद में सांप्रदायिक सछ्वाव के प्रतीक और संतकबीर के विचारों की अनूठी मिसाल हैं। एकता की अनेक मिसाल समेटने वाले कबीर चौरा पर हर वर्ष देश के कोने-कोने से कबीर पंथियों के साथ ही विदेशियों का भी आना जाना रहता है।
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समाधि तथा मजार की देखरेख के लिए नवाब बिजली खां ने दी थी जागीर
कबीर चौरा परिसर में स्थित समाधि तथा मजार की देखरेख के लिए जौनपुर के नवाब बिजली खां ने सुरति गोपाल साहब और एक अन्य कबीर भक्त को पांच-पांच सौ बीघे अलग-अलग जागीर दी थी। इसमें सुरति गोपाल साहब की जागीर कबीर चौरा से पांच किमी दूरी पर है जो गोरखपुर जिले के सहजनवां तहसील क्षेत्र में स्थित है। यहां खेती से समाधि मंदिर पर रहने वालों के लिए भोजन की व्यवस्था होती है।
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