मजदूर पिता की डॉक्टर बेटी बनेगी गरीबों की भगवान
राघवेंद्र शुक्ल, सम्भल : मुस्लिम बहुल जनपद जहां शिक्षा का स्तर बद से बदतर है और जहां आज भी बेटियों क
राघवेंद्र शुक्ल, सम्भल : मुस्लिम बहुल जनपद जहां शिक्षा का स्तर बद से बदतर है और जहां आज भी बेटियों की साक्षरता दर 40 फीसद का आंकड़ा भी नहीं छू सका है। वहां से मुस्लिम समाज की एक बेटी ने दीनी के साथ दुनियावी तालीम को अपनी ¨जदगी का हिस्सा बना लिया। जितना वह अपने मजहब के प्रति गंभीर है उतनी ही तेजी से बदलते हुए वैज्ञानिक युग को लेकर सतर्क भी। ढिबरी की लौ में बिना को¨चग इंस्टीट्यूट की मदद से इस बेटी ने सीपीएमटी जैसी परीक्षा में आज से छह साल पहले बेहतर रैं¨कग के साथ सफलता पाई। आज वह एमबीबीएस डॉक्टर बन चुकी है। गरीब मजदूर की बेटी की सफलता ने अचंभित तो नहीं किया लेकिन उन हजारों बेटियों के लिए आइडियल जरूर बन गई जो शुरुआत में हिम्मत हार जाते थे। अब इस बेटी का सपना सम्भल के उन परिवारों का इलाज करना है जो इलाज के अभाव में दम तोड़ जाते थे। आज जहां सरकारी अस्पताल में कोई भी नौकरी करने से बचता है वहीं यह बेटी सरकारी अस्पताल के जरिए ही गरीबों का भगवान बनने की राह पर चलने की शपथ ले चुकी है। हालांकि अभी यह एमडी की तैयारी के लिए जुटी हैं। इसके बाद उनका अगला पड़ाव यूपी के स्वास्थ्य महकमे में डॉक्टर के रूप में तैनाती पाने का है।
शहर के हयातनगर सैफियो वाली मस्जिद निवासी मोहम्मद शफाक और शहाना की तीन बेटियां तथा एक बेटा है। हड्डी सींग के काम से जुड़े मजदूर शफाक की आमदनी हर माह 10 से 15 हजार तक ही होती थी। खुद तो वह पढ़ लिख नहीं सका लेकिन स्नातक पास बीवी शहाना की प्रेरणा से उन्होंने अपनी बेटियों को बेटों जैसा माना और उनकी पढ़ाई नहीं रोकी। कभी कभी एक टाइम भी खाना खाया और अपनी ख्वाहिशों को दिल में ही दबा लिया पर बेटियों की फीस जरूर जमा की। वर्ष 2009 में एएमयू से इंटर की पढ़ाई के बाद बड़ी बेटी अर्शी शफाक एमबीबीएस डॉक्टर बनना चाहती थी लेकिन आर्थिक तंगी आड़े आ रही थी। आज जहां कोटा, दिल्ली, लखनऊ और मुरादाबाद में सीपीएमटी तैयारी के को¨चग सेंटर एक लाख से दो लाख रुपये तक की फीस ले लेते हैं वहीं तीन साल की अथक मेहनत के बाद अर्शी ने घर पर ही पढ़ाई कर पहले ही प्रयास में सीपीएमटी प्रवेश परीक्षा न केवल उत्तीर्ण की बल्कि मेरठ के लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कालेज में दाखिला लिया। कुछ माह पहले वह एमबीबीएस की डिग्री लेकर घर आई और अब एमडी मेडिसिन में प्रवेश के लिए घर बैठकर तैयारी कर रही हैं। पैसा नहीं है कि को¨चग करें। अगला टारगेट एएमयू से एमडी करने का है। अर्शी ही नहीं उनकी छोटी बहन तूबा अधिवक्ता बनना चाहती हैं और इसकी प्रवेश परीक्षा में शामिल हो चुकी हैं। इंटर प्रथम श्रेणी से पास तूबा को प्रवेश परीक्षा के परिणाम का इंतजार है। सबसे छोटी बेटी यशा जहां छह में है वहीं इकलौता बेटे जैद ने भी प्रथम श्रेणी से इंटर पास किया है। यानी कम कमाई के बावजूद शफाक व शहाना ने अपनी ख्वाहिशों को अपने बच्चों के माध्यम से पूरा कर लिया।
अर्शी कहती हैं कि बचपन से उन्हें एक पैर में दिक्कत है और इसका इलाज अब भी चल रहा है। मेरी बचपन से ही इच्छा थी कि मैं दुनियावी तालीम लेकर डॉक्टर बनूं। मेरे सामने दिक्कतें ज्यादा थी लेकिन फिर भी मैंने अपना लक्ष्य हासिल किया। मेरी ख्वाहिश है कि मैं सम्भल में ही गरीबों का इलाज करूं। मेरी इच्छा सरकारी नौकरी में जाकर गरीबों के इलाज करने की है। पिता शफाक व शहाना भी बेटी के निर्णय के साथ हैं। अब उन्हें बेटी के एमडी होने का इंतजार है। इनसेट
पूरी रात पढ़ती थी अर्शी
सम्भल : अर्शी के पढ़ाई का रूटीन अलग था। कहती हैं कि दिन में चहल पहल शोर शराबा घर में रहता था तो मैं रात के दस बजे से सुबह के चार बजे तक पढ़ती थी। इसके बाद सोती थी और 10 बजे उठती थी। यही प्रक्रिया वह बीते 9 साल से अपनाई हुई हैं। एमडी के प्रवेश परीक्षा के लिए भी उनका यही रूटीन है।