तीन ग्राम पंचायते घटी, छुटमलपुर बनी नगर पंचायत
इस बार के पंचायत चुनाव में परिसीमन के बाद
सहारनपुर, जेएनएन। इस बार के पंचायत चुनाव में परिसीमन के बाद 884 ग्राम पंचायतों के लिए वोट डाले जाएंगे, जबकि पिछली बार जनपद में 887 ग्राम पंचायतों के लिए वोट डाले गए थे।
ग्राम पंचायतों के घटने का कारण छुटमलपुर व फतेहपुर ग्राम पंचायतों को मिलाकर उसे नगर पंचायत का दर्जा मिलना रहा, जबकि एक ग्राम पंचायत सीमा विस्तार के चलते समाप्त हो गई। हालांकि इससे जिला पंचायत की कोई सीट प्रभावित नहीं हुई है।
जनपद सहारनपुर में इस बार 884 ग्राम पंचायतों, 1207 क्षेत्र पंचायतों एवं जिला पंचायत की 49 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं, जबकि पिछली बार जनपद में 887 ग्राम पंचायतों से प्रधान चुने गए थे। इस बार तीन ग्राम पंचायतें समाप्त हो गई हैं।
इसका कारण यह है कि विकासखंड मुजफ्फराबाद की ग्राम पंचायत छुटमलपुर और ग्राम पंचायत फतेहपुर भादों को मिलाकर छुटमलपुर को नगर पंचायत का दर्जा दिया गया है। साथ ही रामपुर मनिहारान ग्रामीण ग्राम पंचायत का नगर पंचायत रामपुर की सीमा विस्तार में होने के कारण तीन ग्राम पंचायतें कम हो गई। जिससे इनके 15-15 ग्राम पंचायत वार्ड प्रभावित हुए हैं। जबकि क्षेत्र पंचायत वार्डों की संख्या 133 से 139, वार्ड संख्या 140 से 142 तथा वार्ड संख्या 39 से 41 तक प्रभावित हुए हैं। हालांकि इस परिसीमन से जिला पंचायत के वार्डों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।
इस संबंध में जिला पंचायत राज अधिकारी उपेंद्र राज सिंह का कहना है कि जनपद में इस बार 884 ग्राम पंचायतों के लिए चुनाव हो रहे हैं। इससे जिला पंचायत की सीटों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है।
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..तो मतदाताओं की हो रही बल्ले-बल्ले
जागरण संवाददाता, सहारनपुर : त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के मतदान की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है। वैसे ही ग्राम प्रधान और जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। तमाम दावों और वादों की बौछार कर रहे हैं वहीं कुछ वोटर भी इस मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं हैं। कहीं देशी दारु चल रही है तो कहीं अग्रेजी शराब की बोतले चल रही हैं। मुर्गा पार्टी भी खूब चल रही है, कुछ स्थानों पर फसल कटवाने तक के वादे कराए जा रहे हैं तो वहीं कुछ गांवों में जलेबी या सफेद रसगुल्ले बांटे जा रहे हैं। हालांकि ग्राम प्रधान और जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने वालों के खर्च की सीमा तय की गई है। इसका आंकलन प्रचार सामग्री से ही लगाया जाता है परंतु गांवों में पोस्टर के अलावा कोई खर्च दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि दावतों का दौर पिछले कई दिनों से चल रहा है और प्रत्याशी समर्थकों की बल्ले-बल्ले हो रही हैं।