जिले में पर्यटन स्थलों को अभी विकास का इंतजार
सहारनपुर में कई ऐतिहासिक स्थल और भवन हैं जो पर्यटन की दृष्टि से काफी अहम हो सकते हैं। महानगर में फुलवारी आश्रम और बाबा लालदास का बाड़ा सहित कई ऐतिहासिक स्थल और भवन हैं। वहीं गंगोह में भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं। उन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में चल रहे प्रयास फलीभूत नहीं हो सके हें।
सहारनपुर, जेएनएन। सहारनपुर में कई ऐतिहासिक स्थल और भवन हैं, जो पर्यटन की दृष्टि से काफी अहम हो सकते हैं। महानगर में फुलवारी आश्रम और बाबा लालदास का बाड़ा सहित कई ऐतिहासिक स्थल और भवन हैं। वहीं गंगोह में भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं। उन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में चल रहे प्रयास फलीभूत नहीं हो सके हें। शहर में कंपनी बाग लोगों के लिए सुबह-शाम घूमने का एकमात्र रमणीय स्थल है।
जिले में पर्यटन के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। सिद्धपीठ मां शाकंभरी देवी मंदिर को धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए सरकार द्वारा कई बार घोषणाएं की जा चुकी हैं। आस्था के केंद्र मां शाकंभरी देवी में दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। वर्ष में नवरात्र में दो बार यहां मेले भी लगते हैं। महानगर में ऐतिहासिक फुलवारी आश्रम, दरगाह हाजी शाह कमाल तथा बाबा लालदास बाड़ा स्थल को एक सर्किट के रूप में इंटीग्रेटेड कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किए गए। फुलवारी आश्रम में शहीदे आजम भगत सिंह फरारी के दिनों में फुलवारी आश्रम में रुके थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर इसी आश्रम में गुरुकुल के ब्रह्मचारियों के नेतृत्व में हजारों लोगों ने नमक बनाकर कानून तोड़ा था। ऐतिहासिक पांवधोई नदी के दोनों तट के विकास के साथ ही बाबा के आश्रम का एक भव्य स्थल के रूप में विकास कर वाकिग प्लाजा, फव्वारे, योगा स्थल, शोभाकारी पौधों के साथ उसे ऐतिहासिक महत्व का दर्शनीय स्थल बनाने की दिशा में काम चला। महानगर के बीचोबीच कंपनी बाग सुबह-शाम घूमने के लिए लोगों के लिए एक रमणीय स्थल है। यहां सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ आज भी है।
गंगोह: राजा गंग द्वारा बसाया गया गंगोह अपने आप में इतिहास समेटे हुए हैं। गंगोह में महाराजा गंग के महल की निशानी महज एक दरवाजा आज भी मौजूद है, जिसे अब इस पर काबिज लोग अपने पूर्वजों की निशानी साबित करने लगे हैं। शासन प्रशासन का ध्यान न होने से इसकी वास्तविकता को समाप्त करने का प्रयास भी किया गया। गंगोह के मुख्य स्थलों की यदि खुदाई हो तो बहुत पुराने इतिहास का पता लग सकता है। 1978 में सर्राफा बाजार में खुदाई के दौरान हजारों साल पुरानी मूर्तियां निकली थी। यहां से पांच किमी दूर गांव लखनौती भी मुगल काल का इतिहास समेटे हुए है। उस काल की भूलभुलैया, हुजरे, किला व सुरक्षा चौकियों के अवशेष आज भी मौजूद हैं। गांव बुढ़ाखेड़ा में 1857 की क्रांति के योद्धा फतवा गुर्जर का किला था, जिसका आज कोई पता नहीं है। ऐतिहासिकता की दृष्टि से देखा जाए तो यहां के धार्मिक स्थलों दरगाह हजरत कुतबे आलम, सिद्धपीठ बाबा हरिदास व ककराली सरोवर का भी कम महत्व नहीं है। नगर की पहचान रशीद अहमद गंगोही के नगर के रूप में भी होती है, जिन्होंने जहां दारूल उलूम देवबंद की स्थापना में अपनी भूमिका अदा की वहीं स्वतंत्रता आंदोलन का भी हिस्सा बने। वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा गंगोह को उत्तर प्रदेश का एक मात्र ग्रामीण पर्यटन स्थल घोषित किया था और यहां के प्रमुख स्थलों बाबा हरिदास, शाकंभरी देवी मंदिर व हजरत कुतबे आलम की दरगाह से सुंदरीकरण की शुरुआत की थी। प्रथम किस्त के रुप में 49.28 लाख रुपया दिया गया था। आपसी विवाद के कारण देवी मंदिर पर लगने वाला पैसा नहीं लग पाया और इसकी काफी रकम वापस हो गई थी। ककराली सरोवर के लिए पहले 50 लाख और फिर एक करोड़ की राशि आई थी, जिसे सरोवर के आसपास की सड़कों आदि को बनाने में खर्च किया गया। यहां के इतिहास को समेटने वाले स्थलों का जब तक विकास नही होता तब तक ग्रामीण पर्यटन केंद्र का रूतबा कायम नही हो सकेगा।