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बरसों से इल्म की रोशनी फैला रहे पथिक

वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या जिस पथ पर बिखरे शूल न हों नाविक की धैर्य परीक्षा क्या जब धाराएं प्रतिकूल न हों। जयशंकर प्रसाद की इन पक्तियों में जिस जज्बे की चर्चा की गई है सहारनपुर के 71 वर्षीय हरिराम पथिक उस पर खरे उतरते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 11:46 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 06:05 AM (IST)
बरसों से इल्म की रोशनी फैला रहे पथिक
बरसों से इल्म की रोशनी फैला रहे पथिक

सहारनपुर, जेएनएन। वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या, जिस पथ पर बिखरे शूल न हों, नाविक की धैर्य परीक्षा क्या, जब धाराएं प्रतिकूल न हों। जयशंकर प्रसाद की इन पक्तियों में जिस जज्बे की चर्चा की गई है, सहारनपुर के 71 वर्षीय हरिराम पथिक उस पर खरे उतरते हैं। बैंक से सेवानिवृत्ति के बाद लगातार बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा दे रहे हरिराम पथिक का मानना है कि शिक्षा का दान सबसे बड़ा दान है, इससे बच्चे सर्वोच्च मुकाम तक पहुंच सकते हैं। पिछले कई बरसों से बच्चों को फ्री ट्यूशन दे रहे पथिक क्षेत्र में अपने कार्य के लिए प्रख्यात हो चुके हैं।

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महानगर के विष्णुधाम कालोनी निवासी बैंककर्मी हरिराम पथिक 35 वर्ष की सेवा के बाद दिसंबर-2008 में सेवानिवृत्त हुए थे। बैंक सेवा के दौरान भी वह लगातार बच्चों को घर पर निश्शुल्क पढ़ाते थे। सुबह बैंक जाने से पहले और शाम को बैंक से आने के बाद वह बैच में बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। बताते हैं कि 1974 में बैंक सेवा में आने से पहले भी उन्हें पढ़ाने का शौक था। दो वर्ष पूर्व ही उन्होंने हिदी विषय में एमए उत्तीर्ण किया इससे पहले वह बीकॉम और अर्थशास्त्र से एमए है। कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को वह सभी विषय पढ़ाते हैं, इसके अलावा कक्षा 9 से 12 तक के छात्र-छात्राएं उनके पास पढ़ने के लिए पहुंचते हैं। ज्यादातर छात्र हिदी माध्यम स्कूल के पढ़ने वाले हैं। पथिक बताते हैं कि उनकी कोशिश ऐसे परिवारों के बच्चों को पढ़ाने की रहती है,जो आर्थिक ²ष्टि से कमजोर होते है। पथिक 15 से अधिक बाल कविताएं लिख चुके हैं। उत्तर प्रदेश हिदी संस्थान द्वारा उन्हें पुस्तक लेखन के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। बाल कविता संग्रह से उन्हें विशेष ख्याति अर्जित की है।

जीवन का लक्ष्य शिक्षा दान

पंजाब नेशनल बैंक से सेवानिवृत्ति के बाद पथिक के जीवन का एक ही लक्ष्य रह गया है कि कोई भी बच्चा जो पढ़ना चाहता है, उसे पढ़ाई में दिक्कत आ रही हो, वह उनके पास पहुंचे ताकि उसे पढ़ा सकें। वह जीवन के आखिरी दौर तक अपनी सेवाओं को बनाए रखना चाहते हैं। 66 वर्षीय पत्नी शिव देवी भी उनके इस कार्य में सहयोग करती है। वह बताती हैं कि पढ़ाने से उन्हें जो सुकून मिलता है वह किसी अन्य काम से नहीं मिलता। बैंक में सर्विस के दौरान भी उनकी हरदम यह कोशिश रहती थी, की छुट्टी के बाद समय से घर पहुंचे ताकि घर पर इंतजार कर रहे छात्र निराश होकर वापस न लौट सकें। उनके दो पुत्र और एक पुत्री विवाहित है। विष्णुधाम कालोनी में पथिक अपनी पत्नी शिव देवी के साथ निवास करते है।


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