शीबा के साथ खुश है 'संस्कृत' तो सुशीला को है 'उर्दू' से मोहब्बत Saharanpur News
तालीम के शहर देवबंद में शीबा दे रही संस्कृत की शिक्षा तो सुशीला उर्दू पढ़ाती हैं। दोनों की नसीहत है कि भाषाओं को धर्म के आधार पर बांटना गलत है।
सहारनपुर, जेएनएन। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत धर्म विद्या संकाय में प्रो. डा. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर विरोध के स्वर बुलंद करने वालों के लिए तालीम के शहर देवबंद की बेटियां शीबा और सुशीला एक नजीर हैं। शीबा के साथ संस्कृत भाषा खुश है तो सुशीला के आगोश में रहकर उर्दू जुबान इतरा रही है। शीबा बच्चों को संस्कृत की तालीम दे रही हैं तो ब्राह्रमण परिवार की बेटी सुशीला बच्चों को उर्दू की शिक्षा बांट रही हैं।
धर्म के आधार पर न बांटें
जुबानों की मुखालफत करने वालों को शीबा और सुशीला की नसीहत है कि भाषाओं को धर्म के आधार पर न बांटा जाए। गंगा जमुनी तहजीब अपने भीतर संजोए धार्मिक नगरी देवबंद की सरजमीन में सभी जुबानें आपस में गलबहिया करती हैं। यहां पावन शक्तिपीठ श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी मंदिर की बगल में श्रावणी उपाकर्म और कर्मकांड सिखाने वाला संस्कृत महाविद्यालय है तो इस्लामी तालीम में दक्षता प्रदान करने वाला विश्व विख्यात केंद्र दारुल उलूम देवबंद भी है। जुबानों का मेल देवबंद की पहचान रहा है। इल्म-ओ-अदब की इस नगरी में संस्कृत जुबान की ज्ञाता शीबा और उर्दू भाषा की माहिर सुशीला बच्चों को अपने अपने विषय में शिक्षित करने का काम कर रही है। डा. शीबा परवीन यहां के गांव रणखंडी के ठा. कृपाल सिंह डिग्री कालेज में पिछले करीब 10 सालों से संस्कृत की अध्यापक हैं। मूल रूप से सहारनपुर की रहने वाली शीबा का बचपन से ही संस्कृत भाषा के प्रति लगाव रहा। अपनी अटूट लगन और दृढ़निश्चय के बूते शीबा ने संस्कृत से पीएचडी की। इस विषय में दक्षता हासिल कराने में शीबा के घर वालों ने भी साथ दिया।
दिलों को जोड़ती भाषा
शीबा का मानना है कि जुबानें आपसी कटुता को समाप्त कर दिलों को जोड़ती हैं इसलिए इनका विरोध किसी मायने सही नहीं है। वहीं, ब्राह्रमण परिवार से ताल्लुक रखने वाली सुशीला शर्मा बच्चों को उर्दू भाषा का ज्ञान करा रही हैं। फिलहाल पूर्व माध्यमिक विद्यालय नंबर एक में अध्यापक के रूप में सेवाएं दे रही सुशीला पिछले 24 सालों से उर्दू की खिदमत कर रही हैं। सुशीला बताती हैं कि उर्दू टीचर के रूप में उनकी नियुक्ति वर्ष 1994 में हुई थी और उर्दू बीटीसी इंटरेंस में उन्होंने जिला टॉप किया था। बचपन से ही उन्हें उर्दू जुबान से मोहब्बत रही। जिसके चलते उन्होंने उर्दू पढ़ने-पढ़ाने का मन बना लिया। उनके घरवालों के अलावा पति ने भी उनका साथ दिया। सुशीला का कहना है कि जुबान किसी मजहब की मोहताज नहीं होती। जुबानों की मुखालफत करना अफसोसनाक है। धर्म और जातपात से ऊपर उठकर योग्यता को वरीयता दी जानी चाहिए।