जानबूझ कर रोजा तोड़ना बहुत बड़ी गलती
मुकद्दस महीने रमजान के रोजे खास अहमियत रखते हैं। उलमा के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर रमजान का रोजा तोड़ता है तो वह बड़ी गलती करता है।
सहारनपुर, जेएनएन। मुकद्दस महीने रमजान के रोजे खास अहमियत रखते हैं। उलमा के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर रमजान का रोजा तोड़ता है तो वह बड़ी गलती करता है।
दारुल उलूम वक्फ के शेखुल हदीस मौलाना अहमद खिजर शाह मसूदी ने इस्लामिक पुस्तक मिशकात शरीफ की एक हदीस का हवाला देकर बताया कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने फरमाया कि जिसने बिना किसी मजबूरी या बीमारी के रमजान का रोजा छोड़ दिया तो वह अगर जिदगी भर भी रोजे रखे तो भी उसका बदल नहीं हो सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि रोजे की कजा (बाद में रोजे रखना) नहीं हो सकती। मकसद यह है कि जो सवाब रमजान में रोजा रखने से मिलता है, वह बाद में नहीं मिलेगा। कहा कि अगर किसी व्यक्ति ने बिना किसी मजबूरी के जानबूझ कर रोजा तोड़ दिया तो उसने बड़ी गलती तो की ही साथ ही अल्लाह के हक को भी पूरा नहीं किया। ऐसे व्यक्ति को अल्लाह से माफी मांगते हुए कफ्फारा अदा करना होगा।
मौलाना ने बताया कि कफ्फारा का मतलब है एक रोजे के बदले एक रोजा रखें और एक गुलाम आजाद करें। बताया कि आजकल के दौर में गुलाम न होने की सूरत में दो माह तक लगातार रोजे रखें। अगर यह भी मुमकिन न हो तो 60 मिसकीनों (जिनके मां-बाप न हो) या मोहताजों को दो वक्त पेट भरकर खाना खिलाएं या फिर 60 आदमियों को एक-एक फितरा की कीमत दें। मौलाना मसूदी ने कहा कि कोरोना का काला साया फिर से हमारे ऊपर मंडरा रहा है। ऐसे में हमें चाहिए कि हम इस पाक महीने में कोरोना के खात्मे को खूब दुआएं करें और कोरोना से बचाव को गाइडलाइन का पालन अवश्य करें।