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हजरत कुतबे आलम उर्स की खास रस्म झुब्बा शरीफ पर लगी रोक

सहारनपुर जेएनएन। गंगोह में हजरत कुतबे आलम के 49

By JagranEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 08:09 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 08:09 PM (IST)
हजरत कुतबे आलम उर्स की खास रस्म झुब्बा शरीफ पर लगी रोक
हजरत कुतबे आलम उर्स की खास रस्म झुब्बा शरीफ पर लगी रोक

सहारनपुर, जेएनएन। गंगोह में हजरत कुतबे आलम के 498वें उर्स की खास रस्म झुब्बा शरीफ प्रशासनिक प्रतिबंध के चलते संपन्न नहीं हो पाई।

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हजरत कुतबे आलम के उर्स कार्यक्रम इस बार कोरोना प्रतिबंध के बीच मंगलवार को आरंभ हो गए थे। सुबह के समय कुरान पाठ हुआ जबकि रात को मामू मौला बख्श की मजार पर चादर चढ़ाई गई। कोरोना गाइड लाइन के कारण इस बार दुकानें लगाने की भी इजाजत नहीं दी गई थी। बुधवार को सुबह जायरीनों ने मामू पर चादरें चढ़ाई और तीसरे पहर चंद श्रद्धालुओं ने बाबा हरिदास पर धर्मध्वजा स्थापित की। गुरूवार को उर्स की मुख्य रस्म झुब्बा शरीफ पूरी होनी थी लेकिन प्रशासनिक अनुमति न मिलने के कारण जायरीन इसकी जियारत करने से महरूम रहे। श्रद्धालुओं का कहना है कि 498 वर्ष में ऐसा पहली बार हुआ है कि लोगों को इससे महरूम रहना पड़ा। बताया जा रहा है कि इस रस्म को पूरा करने वाले सज्जादानशीं का पिछले दिनों इंतकाल हो गया था इसके बाद से इस रस्म को लेकर दो पक्षों में विवाद चल रहा है। जानकारी के अनुसार जुब्बा शरीफ नही निकलने का मुख्य कारण सज्जादगी को लेकर दो पक्षों में विवाद बताया जा रहा है। कोतवाली प्रभारी परविदर पाल सिंह का कहना है कि दो पक्षों में इसे लेकर विवाद चल रहा है। एक पक्ष द्वारा शिकायत करने व व बढ़ते तनाव को देखते हुए इस रस्म पर इस बार रोक लगाई गई है। यहां आकर बदल जाती है हर तकदीर-ए-इंसानी

दूर-दूर से आये कव्वालों ने हजरत कुतबे आलम की शान में खूब कसीदे पढ़े। इस अवसर पर श्रोता पूरी तरह कव्वालियों में लीन हो गए।

उर्स के मौके पर रोजाना कव्वालियों का आयोजन किया जा रहा है। महफिल का आगाज खत्म कुल शरीफ व दरुद-फातिहा से हुआ। हजरत अलाउद्दीन साबिर कलियरी के हजूर में सलाम-ए-अकीदत 'अस्सलामे हजरते मखदूम साबिर अस्सलाम.. पेश किया गया। कहा गया ' मैं बुरा हूं मुझको निभा लिया, तुम्हें मेरा कितना ख्याल हैं । ' ये करम है ये अहसान-ए-मौलाना को प्रस्तुत किया। बाहर से आए कव्वालो ने अपना कलाम पेश किया। कव्वालों ने कव्वाली की महफिल को अपने पूरे चरम पर पहुंचा दिया। अकीदत व ऐहतराम से भरपूर देश भर से आये खानकाहों के सूफी व सज्जादानशीनों की उपस्थिति से इस पूरी महफिल का रंग सूफियाना हो गया। रात के आगे बढऩे के साथ-साथ कव्वाल नजराना-ए-अकीदत पेश करते रहे। महफिल बाद में अपने पूरे सरुर व कैफियत पर आ गई, एक के बाद एक करके इस महफिल-ए-सीमा में कव्वालों की अलग-अलग टोलियां हजरत के मजार पर उनकी शान में अपना नजराना-ए-अकीदत पेश करती रही। अनेक स्थानों से आई कव्वालों की टीमों ने अपनी उपस्थिति का अहसास कराया।


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