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जन-जन को एकता के सूत्र में पिरोकर प्रेम और सद्भाव बढ़ाएं

राष्ट्रीय अखंडता की अवधारणा का मूल उद्देश्य देश में सभी वर्गों जातियों धर्मों तथा क्षेत्रों के लोगों को एकता के सूत्र में बांधना है। यह प्रेम सौहार्द सहयोग तथा शांति के साथ स्थापित की जाने वाली ऐसी भावना है जिससे सामान्य परिस्थितियों में समाज तथा देश प्रगति पथ पर अग्रसर हो सके।

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Sep 2021 11:02 PM (IST)Updated: Wed, 29 Sep 2021 11:02 PM (IST)
जन-जन को एकता के सूत्र में पिरोकर प्रेम और सद्भाव बढ़ाएं
जन-जन को एकता के सूत्र में पिरोकर प्रेम और सद्भाव बढ़ाएं

सहारनपुर, जेएनएन। राष्ट्रीय अखंडता की अवधारणा का मूल उद्देश्य देश में सभी वर्गों, जातियों, धर्मों, तथा क्षेत्रों के लोगों को एकता के सूत्र में बांधना है। यह प्रेम, सौहार्द, सहयोग तथा शांति के साथ स्थापित की जाने वाली ऐसी भावना है जिससे सामान्य परिस्थितियों में समाज तथा देश प्रगति पथ पर अग्रसर हो सके। विषम परिस्थितियों जैसे दैवीय आपदा, युद्ध अथवा अन्य किसी विभीषिका का सामना करने में सभी नागरिकों से अपेक्षित सहयोग मिल सके। पारस्परिक, मतभेदों को भुलाकर समाज के सभी वर्ग राष्ट्र की तत्कालिक एवं दीर्घकालिक अपेक्षाओं के अनुरूप व्यवहार करें, इसका अर्थ यह भी है नागरिकों के हितों एवं उनकी जरूरतों को राष्ट्र हितों पर प्राथमिकता दी जाए। हमारा देश एक बहुलता प्रधान देश है जिसमें विभिन्न धर्मों, जातियों, मतों, संस्कृतियों व क्षेत्रों के लोग सदियों से प्रेम व परस्पर सद्भाव के साथ रहते आए हैं। यहां एक दूसरे के विश्वास एवं रीति रिवाजों का सम्मान समाज के समावेशी चरित्र को रेखांकित करता है, किन्तु अनेक अवसर ऐसे भी आए हैं जब इन्हीं धार्मिक, जातीय, क्षेत्रीय भावनाओं का शोषण कर कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने देश की एकता एवं अखंडता को कमजोर किया है जिसके फलस्वरूप साम्राज्यवादी शक्तियों ने सदियों हमें गुलामी की बेड़ियों में जकड़े रखा। स्वाधीनता संग्राम के हमारे नायकों तथा उस समय के समाज सुधारकों ने इस कटु वास्तविकता को पहचाना तथा उनके अथक प्रयासों से हमारे समाज में सांस्कृतिक एवं राजनीतिक चेतना जागृत हुई। उन्होंने भारतीय समाज की सांस्कृतिक, भौगोलिक भाषाई धार्मिक जातीय विविधताओं को बनाए रखते हुए देश को एक राष्ट्र के रूप से स्थापित किया। इसके वांछित परिणाम भी आए तथा सभी लोगों ने अपनी पहचान खोए बिना स्थापित होने वाली इस धारणा को सहर्ष स्वीकार किया। यह भी उल्लेखनीय है कि इसके बाद ही साम्राज्यवादी शक्तियां देश को छोड़ने पर मजबूर हुईं। भौगोलिक रूप से विशाल देश जहां प्राकृतिक संसाधन भी पूरे देश में फैले हुए हैं, जिनके तार्किक एवं समुचित उपयोग के लिए भी इस अवधारणा का उतना ही महत्व है। विकास एवं रोजगार की ²ष्टि से भी एक स्वस्थ राष्ट्रीय अखंडता की भावना की आवश्यकता है। समय-समय पर सांप्रदायिक क्षेत्रीय संकीर्णता की मानसिकता देश की विकास यात्रा को बाधित करती प्रतीत होती हैं जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद इस प्रकार की असामाजिक एवं अमानवीय घटनाओं का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय एकता और अखंडता की रक्षा में देश के हर नागरिक की अहम भूमिका होती है। अपने प्रतिनिधि चुनते समय हमें उनके पूर्व इतिहास और चरित्र पर ध्यान देना चाहिए. लोभ लालच या स्वार्थवश ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर संकट आए। राष्ट्र के तीन अनिवार्य अंग हैं भूमि, निवासी और संस्कृति. एक राष्ट्र के दीर्घ जीवन और सुरक्षा के लिए इन तीनों का सही संबंध बना रहना परम आवश्यक होता हैं। स्कूल में बच्चों को हमें पढ़ाई के साथ-साथ ऐसे संस्कार देने चाहिए जिससे उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना और अधिक जाग्रत हो सके। देश के महापुरुषों के प्रेरक कहानियों को बच्चों को बताना चाहिए ताकि उनसे मिली शिक्षा को वह जीवन में अंगीकार कर आगे बढ़ सकें। नई शिक्षा नीति में ऐसी बातों का समावेश किया गया है कि जिससे बच्चों को बालपन से ही देश के प्रति अधिकार और कर्तव्यों की जानकारी विस्तार से मिल सकेगी। बेसिक शिक्षा पूरी कर जब बच्चे जूनियर और माध्यमिक कक्षाओं में पहुंचेंगे तो वे पहले की अपेक्षा अधिक संस्कारी होंगे। आवश्यकता इस बात की भी है कि यदि देश के सभी नागरिक पारस्परिक मतभेदों को भुलाकर राष्ट्रसेवा के लिए एक साथ उठ खड़े हों तो ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका हम समाधान न कर सके। राष्ट्रीय अखंडता एवं एकता की भावना को और अधिक मजबूत करने के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र निर्माण एवं विकास की इस अनवरत यात्रा का एक अटूट अंग बनाना आवश्यक है। शकील अहमद

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प्रधानाचार्य, एल्पाइन पब्लिक स्कूल चिलकाना रोड।


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