कभी हुनर से हंसाता था, अब सब्जी बेचकर पाल रहा परिवार
नानौता लॉकडाउन में कई के रोजगार बदल गए हैं। शमशाद भी उनमें से एक है। वह स्टेयू बनकर परिवार का गुजारा करता था। उसने अपने हुनर को छोड़कर गली में ठेली चलाकर सब्जी बेचना शुरू कर दिया है।
सहारनपुर, जेएनएन। नानौता लॉकडाउन में कई के रोजगार बदल गए हैं। शमशाद भी उनमें से एक है। वह स्टेच्यू बनकर परिवार का गुजारा करता था। उसने अपने हुनर को छोड़कर गली में ठेली चलाकर सब्जी बेचना शुरू कर दिया है। कोरोना संक्रमण काल में यूं तो सभी के लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हुआ। ऐसे समय में अपना परिवार का गुजारा करने के लिए ऐसे बहुत लोग हैं, जो हिम्मत न हारते हुए अपने धंधा को छोड़कर रोजगार के अन्य विकल्प तलाश कर काम कर रहे हैं।
एक मशहूर शायर के इस शेर
नानौता निवासी शमशाद मलिक इन्हीं में से एक है। बकौल 55 वर्षीय शमशाद मलिक मौसम कोई भी हो वह लगभग 25 वर्षों से शादी विवाह धार्मिक, सामाजिक व खुशी के अन्य कार्यक्रमों में दरबान, जोकर, वेलकम,गुजरी,महात्मा गांधी, मुनीम व विभिन्न महापुरुषों की भूमिका के रूप में स्टेचू बनकर 3 से 4 घंटे तक लगभग स्थिर होकर एक ही मुद्रा में खड़े रहने का हुनर रखते हैं। इसके बदले उन्हें प्रत्येक कार्यक्रम में एक हजार रुपए से लेकर डेढ हजार रुपये तक, कहीं तो दो हजार रुपए तक मिलते थे। इससे वह अपने परिवार का भरण पोषण ठीक-ठाक कर रहे थे। लेकिन कोरोनाकाल के चलते शादी ब्याह सहित सभी धार्मिक, सामाजिक व अन्य कार्यक्रम संक्षेप में बहुत ही सादगी के साथ हो रहे हैं, इसके चलते उसकी कला का धंधा बंद हो जाने से परिवार का गुजर-बसर मुश्किल होता देख अब वह सब्जी मंडी से सब्जी खरीदकर नगर के गली मोहल्लों में आवाज लगाकर सब्जी बेच रहे हैं। इससे वह अपने सात सदस्यों के परिवार को दो वक्त की रोटी का प्रबंध कर रहे हैं, हालांकि सब्जी बेचने में उसे मात्र ढाई सौ से तीन सौ रुपए की आमदनी हो रही हैं। वह इसमें इसलिए संतुष्ट है क्योंकि उसे किसी दूसरे के आगे हाथ फैलाना नहीं पड़ रहा है। इसी सूक्ष्म आमदनी में वह अपने बीमार बेटे शादाब मलिक की दवाई भी कर रहा है।
कलाकार शमशाद का कहना है कि अपनी कला के इन 25 सालों में उसने हरियाणा, पंजाब,हिमाचल, राजस्थान, गुजरात,आसाम व गुवाहाटी सहित देश के विभिन्न राज्यों में अपनी स्टेचू की कला का बेहतरीन प्रदर्शन कर आयोजकों से बड़े-बड़े इनाम भी हासिल कर चुका है।