न्याय पालिका के प्रति और बढ़ेगा विश्वास
मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआइ के दायरे में आने के फैसले पर वकीलों की प्रतिक्रियाएं
जागरण संवाददाता, रामपुर : प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) का कार्यालय भी अब सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानून के दायरे में आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला दे दिया है। इस फैसले को लेकर ज्यादातर विधि विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न्याय पालिका के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि आम आदमी में न्याय पालिका के प्रति और अधिक विश्वास बढ़ेगा। हालांकि कुछ अधिवक्ता इससे सहमत नहीं हैं। जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला देकर आरटीआइ के आम आदमी के अधिकार को महत्ता दी है। यह सही फैसला है। न्याय पालिका को भी आरटीआइ के दायरे में लाया जाना चाहिए। इससे पारदर्शिता आएगी। जिला शासकीय अधिवक्ता (राजस्व) अजय तिवारी का कहना है कि न्याय पालिका स्वतंत्र संस्था है। वादकारी के लिए न्यायाधीश ईश्वर का ही रूप होता है। इस फैसले के बाद आम आदमी में न्याय पालिका के प्रति विश्वसनीयता और बढ़ जाएगी। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता राम औतार सिंह सैनी का कहना है कि हर व्यक्ति चाहता है कि उसे न्याय मिले। इस फैसले से आम आदमी को न्याय मिलने में आसानी होगी। न्याय पालिका के प्रति आम आदमी का विश्वास और बढ़ेगा। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद लोधी मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआइ के दायरे में लाए जाने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसले पर आरटीआइ की कोई डिमांड नहीं होनी चाहिए। अधिवक्ता नासिर सुल्तान मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आरटीआइ पर दिए गए फैसले से न्याय पालिका के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इस फैसले के बाद न्यायिक फैसलों में और भी पारदर्शिता आएगी। बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष श्याम लाल का कहना है कि न्याय पालिका को आरटीआइ के दायरे में नहीं लाना चाहिए। अदालतों में होने वाले फैसलों की सत्यापित प्रति हर किसी को उपलब्ध कराई जाती है। ऐसे में आरटीआइ मांगने का कोई औचित्य नहीं है। न्याय की देवी के संबंध में पूछे सवालों का नहीं मिल सका था जवाब
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रामपुर : प्रधान न्यायाधीश कार्यालय को आरटीआइ कानून के दायरे में लाए जाने के फैसले से रामपुर के आरटीआइ कार्यकर्ता दानिश खां खुश हैं। वह बताते हैं कि अब न्याय पालिका से संबंधित जानकारियां भी आरटीआइ से मिल सकेंगी। उन्होंने बताया कि इससे पहले उन्होंने न्याय पालिका से संबंधित एक आरटीआइ डाली थी, जिसमें न्याय की देवी की प्रतिमा के आधार को लेकर सूचनाएं मांगी थीं। इस देवी की आंखों पर पट्टी बांधने, हाथ में तराजू और उसका पलड़ा ऊंचा और नीचा होने के आधार की जानकारी मांगी थी। तब उन्हें इन सवालों के जवाब नहीं मिल सके थे। केंद्रीय सूचना आयुक्त ने यह कहकर अपील का निस्तारण कर दिया कि इन सवालों का कोई लिखित रिकार्ड उपलब्ध नहीं है।