जरा संभलिए, मोबाइल देकर बच्चों के दुश्मन बन रहे हैं आप
जरा संभलिए मोबाइल देकर बचों के दुश्मन बन रहे हैं आप
जागरण संवाददाता, रामपुर : मोबाइल का दानव आज बच्चों से उनका बचपन छीनता जा रहा है। इसकी गिरफ्त में आ कर वे गंभीर बीमारियों का शिकार भी होने लगे हैं। वे बच्चे जो शारीरिक ऊर्जा खर्च होने वाले खेल न खेल कर सारा समय मोबाइल पर लगे रहते हैं, अक्सर मोटापा व हाईपरटेंशन जैसी बीमारियां का शिकार हो जाते हैं। उनको लाइफस्टाइल डिसआर्डर हो जाता है, जिसमें मोटापा बढ़ना, भूख कम लगना व चिड़चिड़ा होना आदि शामिल हैं। कड़वा सच यह है कि बच्चों में ये सब बीमारियां होने के जिम्मेदार माता-पिता खुद हैं।
कुछ दिन पहले एक परिचित के घर जाना हुआ। वहां उनके दो पुत्र हमारी बातचीत से बेखबर मोबाइल में गुम थे। अरे देख, वह उधर से आ रहा है, हेड शॉट मार हेड शॉट अचानक गोली चलने की आवाज आती है और नन्हा अरुण अपने बड़े भाई के गले लग जाता है। दर असल ये दोनों बालक 'पबजी' नाम का ऑनलाइन गेम खेल रहे थे। जिसमें उन्होंने एक शत्रु को पछाड़ दिया था। पता चला कि वे दोनों मोबाइल पर कई घंटे रोज बिताते हैं। ये दोनों भाई तो खुश रहते हैं, लेकिन इनके माता-पिता इनके मोबाइल प्रेम से परेशान हो चुके हैं। उनके पिता ने बताया कि कुछ समय पहले तक वे खाली समय में घर के सामने वाले मैदान में भागदौड़ वाले खेल खेलते थे। साइकिल चलाते थे, दूसरे बच्चों के साथ मौजमस्ती करते थे, लेकिन अब घर से बाहर ही नहीं निकलते। हमेशा इस जुगत में रहते हैं, कि कब मोबाइल मिले और गेम खेलना शुरू करें। सच पूछिए तो यह आदत बच्चों के लिए बहुत घातक है। डॉक्टर अपनी भाषा में बच्चों के इसे मोबाइल एडिक्शन यानि मोबाइल की लत कहते हैं।
निजी चिकित्सक मीनू गर्ग कहती हैं कि मोबाइल के अधिक प्रयोग से बच्चों में सबसे ज्यादा मानसिक बीमारियों की समस्या देखने को मिलती है। वे मोबाइल को आंखों के बहुत पास रखकर देखते हैं, जिससे आंखों पर प्रभाव पड़ता है। उनकी पास और दूर दोनों की ²ष्टि कमजोर पड़ती है।
इसके साथ क्योंकि ही बाहर खेलने कूदने नहीं जा पाने के कारण उनमें मोटापा और हाईपरटेंशन जैसी बीमारियां होने लगती हैं। जिला अस्पताल में तैनात चिकित्सक दशरथ सिंह के अनुसार मोबाइल फोन प्रयोग करने वाला बच्चा वास्तविक दुनिया से हटकर काल्पनिक दुनिया में जीने लगता है। वह खेलना-कूदना कम कर देता है। उसका संपर्क दूसरे बच्चों के साथ ही परिवार व रिश्तेदारों से भी कम हो जाता है। यानि उसकी सोशल स्किल कम हो जाती है। अभिभावकों को उन्हें मोबाइल से दूर रखना चाहिए। अभिभावक ही जिम्मेदार शिक्षक भी मानते हैं कि बच्चों के मोबाइल प्रेम के पीछे अभिभावक ही जिम्मेदार हैं। बचपन प्ले स्कूल, मिलक की प्रिसिपल राधिका वर्मा इस पर बेबाक राय रखती हैं। उनका कहना है कि बच्चों में मोबाइल की लत स्कूल नहीं, अभिभावक डाल रहे हैं। बच्चों को स्कूल से डायरी मिलती है, उसमें सब कुछ अंकित होता है, लेकिन पैरेंट्स उसे नजरअंदाज कर रहे हैं। पहले स्कूल से वार्ता का जरिया यह डायरी ही हुआ करती थी। अब माता-पाता के पास उसके लिए समय ही नहीं है। बच्चे को कुछ समझना होता है तो वे किताबें कम पढ़ने के बजाए गूगल की मदद लेना अधिक पसंद करते हैं। किड्स प्राइड एकेडमी की प्रियंका अग्रवाल के अनुसार फोन में जब कोई बच्चा गेम खेलता है तो वह उसमें पूरी तरह डूबता चला जाता है। यह आदत ही धीरे-धीरे बच्चों को मोबाइल की लत का शिकार बना देती है। माता-पिता का इसमें बहुत बड़ा रोल होता है। जाने-अनजाने वे बच्चों को मोबाइल और टीवी के लिए प्रेरित करते हैं। आप घर में हैं तो आपको बच्चों को समय देते हुए उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन होता यह है कि आप फोन पर लगे होते हैं और आपके पास उनके लिए जरा भी समय नहीं होता। ऐसे में बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य एवं भविष्य के लिए हम सबको चेतना होगा।