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Rampur CRPF camp Terror Attack : धमाके की आवाज सुन दारोगा ने संभाला था मोर्चा, आतंकियों पर चलाई थीं आठ राउंड गोलियां Rampur News

आतंकियों से मोर्चा लेने वाले दारोगा ओम प्रकाश शर्मा से विशेष बातचीत। शर्मा की ओर से ही घटना का मुकदमा दर्ज किया गया था घटना के डेढ़ साल बाद हो गए थे सेवानिवृत्त।

By Narendra KumarEdited By: Published: Sun, 03 Nov 2019 12:57 AM (IST)Updated: Sun, 03 Nov 2019 08:03 AM (IST)
Rampur CRPF camp Terror Attack : धमाके की आवाज सुन दारोगा ने संभाला था मोर्चा, आतंकियों पर चलाई थीं आठ राउंड गोलियां  Rampur News
Rampur CRPF camp Terror Attack : धमाके की आवाज सुन दारोगा ने संभाला था मोर्चा, आतंकियों पर चलाई थीं आठ राउंड गोलियां Rampur News

रामपुर(भास्कर सिंह )। सीआरपीएफ गु्रप सेंटर पर आतंकी हमले को भले ही 12 साल बीत गए हैं लेकिन, उस समय घटनास्थल पर मौजूद दारोगा ओम प्रकाश शर्मा को आज भी एक-एक बात याद है। आज वह 70 साल के हो चुके हैं और पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त भी। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में उन्होंने पूरा घटनाक्रम बताया। बोले, घटना के समय वह सिविल लाइंस कोतवाली में तैनात थे। मेरी नाइट ड्यूटी थी। रात में गश्त पर निकले थे। तभी करीब एक बजे वायरलेस पर मैसेज आया कि कोसी पुल के पास बोरे में एक लाश पड़ी है। इस पर वह सरकारी जीप से हमराह के साथ कोसी पुल की ओर चल दिए। रास्ते में सीआरपीएफ ग्रुप सेंटर का गेट नंबर एक पड़ा। उस दौरान वहां कोई हलचल नहीं थी। कोसी पुल पहुंचने के बाद वहां बोरे में एक व्यक्ति की लाश मिली। हमने वहां से गुजर रही एक ट्रैक्टर ट्राली को रुकवाकर उसमें लाश रखवा दी। एक सिपाही को लाश के साथ जिला अस्पताल की मोर्चरी में भेज दिया। तब तक रात के ढाई बज चुके थे।

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हम सिविल लाइंस कोतवाली की ओर लौटने लगे। जैसे ही हमारी जीप सीआरपीएफ सेंटर से कुछ दूर पहले रेलवे ओवरब्रिज पर पहुंची तो हमें तेज धमाकों और गोलियों की आवाज सुनाई दी। हम फोटो चुंगी पर आए। यहां पुलिस की पिकेट थी। पिकेट पर मौजूद पुलिस कर्मियों को साथ लेकर हम आगे बढ़े। फोटो चुंगी के सामने जीप रोक दी। इसके बाद हम लोग जीप से उतरकर सीआरपीएफ सेंटर के गेट की ओर बढ़े। खतरे का आभास हो चुका था। मैंने अपनी रिवाल्वर निकाल ली। बाकी पुलिस कर्मियों ने रायफलें तान लीं। धीरे-धीरे आगे बढऩे लगे। हमें गोलियां चलने की आवाजें अब भी आ रही थीं। इसी दौरान हमने सीआरपीएफ गेट से पहले रेलवे क्रॉङ्क्षसंग के गेटमैन वाले केबिन की छत पर एक आतंकी को देखा। वह सीआरपीएफ की ओर हैंड ग्रेनेड फेंक रहा था। इससे पहले कि हम उस पर गोली चलाते, उसने हमें देख लिया और हमारी ओर भी बम फेंका।

हम पीछे हट गए और वापस जीप की ओर दौड़े। इसके बाद हमने फोटो चुंगी में लगी मूर्ति की आड़ लेकर फायङ्क्षरग शुरू कर दी। आतंकियों ने हम पर भी गोलियां चलाईं। मैंने रिवाल्वर से आठ राउंड फायर किए। एक आतंकी की गोली से सिपाही की रायफल की बट टूट गई, जबकि दूसरी रायफल जाम हो गई। हमारे साथ एक होमगार्ड भी था। उसकी टांग में गोली लग गई। बावजूद इसके मैंने रिवाल्वर से गोलियां चलाना जारी रखा। हमारे फायङ्क्षरग करने से गेटमैन के केबिन की छत पर खड़ा आतंकी नीचे कूद गया और अपने साथियों के साथ सीआरपीएफ के अंदर चला गया। तब हम उनके पीछे भागे। रेलवे क्रॉङ्क्षसग तक पहुंचे तो वहां हमें सीआरपीएफ के तीन जवानों की लाशें मिलीं। उनकी रायफलें भी पास में पड़ी थीं। पास में ही आग भी जल रही थी। ऐसा मालूम हो रहा था कि जब आतंकियों ने हमला किया, तब ठंड दूर करने के लिए सीआरपीएफ जवान वहां आग ताप रहे होंगे। इसके बाद सीआरपीएफ गेट पर भी दो जवान मरे पड़े थे। यह देख हम लौटे और वायरलेस से आतंकी हमले की सूचना थाने समेत पुलिस कंट्रोल रूम को दी। कुछ देर बाद पुलिस फोर्स आ गई। सीआरपीएफ में भी अलर्ट हो गया। इस पर आतंकी गेट के बजाय सीआरपीएफ सेंटर की दीवार फांदकर अंधेरे में भाग गए। अगले दिन उनकी ओर से ही घटना की रिपोर्ट दर्ज की गई थी। इस घटना के डेढ़ साल बाद 30 जून 2009 को वह सेवानिवृत्त हो गए थे।


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