चरखे से आधी आबादी लिख रहीं तरक्की की इबारत
खादी को एक वस्त्र ही नहीं अपितु स्वदेशी की भावना जाग्रत करने और हमारी संस्कृति से जोड़ा जाता है।
रायबरेली : खादी को एक वस्त्र ही नहीं अपितु स्वदेशी की भावना जाग्रत करने और हमारी संस्कृति से भी जोड़ा जाता है। आजादी की लड़ाई में स्वदेशी अपनाने के लिए गांधीजी ने आंदोलन चलाया। इसमें दूसरे देशों के वस्त्रों को बहिष्कार करते हुए खादी को अपनाने का संदेश दिया। उनका सपना हर किसी को खादी से जोड़ने का था, जो आज आधी आबादी साकार करने में लगी हुई हैं। मुश्किल हालात में हार न मानते हुए चरखा चलाकर न केवल सूत काटकर परिवार का जीविकोपार्जन कर रही हैं। साथ ही स्वदेशी की भावना भी लोगों में ला रही हैं। जिले में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो चरखे से तरक्की की इबारत लिख रही हैं।
डिडौली स्थित खादी के क्षेत्रीय कार्यालय से आधा दर्जन से अधिक दुकानें जुड़ी हैं। यहां पर शहर के साथ ही आसपास के गांव की महिलाएं सूत कातने के लिए आती हैं। इसमें धमसी राय का पुरवा, गढ़ी, अहियारायपुर, खाली सहाट, किला बाजार समेत कई मुहल्लों की महिलाएं जुड़ी हुई हैं। रोज की दिनचर्या के बीच समय निकालकर चरखे से सूत काट रही हैं। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाएं चरखा चलाकर परिवार की आर्थिक मदद कर रही हैं। सलोन, शिवगढ़, कठवारा, खीरों, जगतपुर आदि क्षेत्रों में महिलाएं इससे जुड़कर गांधी जी के सपने को साकार कर रही हैं। चार से पांच हजार तक की आय
परिवार की जिम्मेदारी का बखूबी से निर्वहन। इसके बाद मिले खाली समय का सदुपयोग। जी हां, यहां पर काम करने वाली महिलाएं आय अर्जित कर परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत कर रही हैं। चार से पांच हजार रुपये तक हर माह अपनी मेहनत से जुटा रही हैं। संगीता, सोमवती ने बताया कि सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक काम करने की दशा में आधा किलोग्राम सूत काटा जाता है। इसे 20 घुंडी सूत कातना भी कहा जाता है। संगीता ने बताया कि उनके पति बढ़ई हैं। आय का कोई दूसरा साधन नहीं है। यहां काम करके किसी तरह परिवार का गुजर-बसर हो जाता है। मेहनत का भुगतान सीधे बैंक में जाता है।