इमरजेंसी में सिर्फ दो डॉक्टर, मरीज आने पर आतीं महिला चिकित्सक
रायबरेली कहने को तो यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खुला है लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसी
रायबरेली: कहने को तो यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खुला है, लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसी चिकित्सीय सुविधाएं भी मरीजों को नहीं मिल पा रहीं। क्षेत्र की आबादी दो लाख से ज्यादा है, इलाज की जिम्मेदारी सिर्फ दो डॉक्टर उठा रहे हैं। एक महिला चिकित्सक हैं, महिला मरीज के आने पर ही वे ड्यूटी पर आती हैं। यह हाल उस स्वास्थ्य इकाई का है, जो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के लोकसभा क्षेत्र अमेठी के अधीन है।
कोरोना की तीसरी लहर से निपटने के लिए यहां की बिल्डिग में भी कोविड हॉस्पिटल खोलने पर विचार चल रहा है। मौजूदा हालातों पर गौर करें तो ये इतना आसान नहीं होगा। प्रतापगढ़ की सीमा पर बसे सलोन में नगर पंचायत भी है। 86 गांव हैं, जिनकी आबादी करीब 1.50 लाख होगी। यहां पहले पीएचसी थी, जिसका सिर्फ नाम बदल दिया गया। सीएचसी के लिए नई बिल्डिग बनी जरूर है, लेकिन अब तक अस्पताल को उसमें शिफ्ट नहीं किया गया है। अधीक्षक डॉ. पीके बैसवार को कोविड टीम में लगा दिया गया है। डॉ. अमित सचान को एल-टू हॉस्पिटल रेलकोच से संबद्ध कर दिया गया है। इमरजेंसी में डॉ. रूपेश और डॉ. आशीष पिछले कई दिनों से लगातार ड्यूटी कर रहे हैं। डॉ. आरती महिला संबंधी केस आने पर अपनी सेवाएं देती हैं। इमरजेंसी में महज 15 से 20 मरीज यहां जब ओपीडी खुलती थी तो रोजाना करीब 150 से दो सौ मरीज आते थे। इमरजेंसी की स्थिति ये है कि पिछले करीब 40 दिनों में 486 मरीजों का इलाज ही यहां किया गया है। डॉक्टरों की कमी और सही से इलाज न मिल पाने के कारण मरीज निजी डॉक्टरों या झोलाछाप की शरण ले रहे हैं। अस्पताल में सिर्फ 20 बेड हैं, जिनमें से अधिकांश खाली हैं। दो साल से एक्सरे बंद
एक्सरे मशीन करीब दो साल पहले अस्पताल में लगा दी गई, लेकिन टेक्नीशियन की तैनाती नहीं की गई। मारपीट या हादसों में लोग घायल होते हैं, तो उन्हें मजबूरन प्राइवेट में ये जांच करानी पड़ती है। यहां नेत्र और दंत रोग विभाग भी हैं, जिनमें शायद ही कभी मरीजों का इलाज किया गया हो। विशेषज्ञ डॉक्टर और प्रशिक्षित स्टाफ के न होने का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।