मदरसे में मिली तालीम ने इन्हें बना दिया इंसानियत का दोस्त
ये सभी छात्र मदरसा जियाउल उलूम तकिया मैदानपुर में पढ़ते हैं। यही पर ये ऑल इंडिया पयाम-ए-इंसानियत फोरम से जुड़े।
रायबरेली, [रसिक द्विवेदी/ शैलेश शुक्ल]। एक नवंबर 2017 को ऊंचाहार एनटीपीसी के ब्वॉलयर में विस्फोट हुआ। हर तरफ तबाही का मंजर। जिधर नजर जाए उधर ही कराहते हुए घायल लोग। घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया। जिला अस्पताल में अफरा-तफरी का माहौल था। इतने घायलों को संभालने में अस्पताल का स्टाफ कम पड़ रहा था। तभी सफेद टोपी लगाए लगभग पचास छात्र वहां आ डटे। घायलों को लेकर एंबुलेंस जैसे ही अस्पताल पहुंचती, छात्र घायलों को उठाते, स्ट्रेचर पर लिटाते और डॉक्टर तक पहुंचा देते।
प्राथमिक उपचार के बाद वार्ड तक पहुंचाने का काम भी ये ही कर रहे थे। लोगों के लिए कौतूहल का विषय था कि घायलों के लिए देवदूत बनकर आने वाले ये छात्र आखिर कौन थे। ये थे पयाम-ए-इंसानियत फोरम के सदस्य। मदरसे में पढ़ने वाले इन छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ इंसानियत की तालीम भी मिली। आपदाओं के अलावा भी यह दल जरूरतमंदों की मदद करता रहता है। इनके सेवाभाव को देखकर स्थानीय लोग इन्हें नेचुरल डिजास्टर रिस्पॉस फोर्स यानी एनडीआरएफ के नाम से भी बुलाने लगे हैं।
ये सभी छात्र मदरसा जियाउल उलूम तकिया मैदानपुर में पढ़ते हैं। यही पर ये ऑल इंडिया पयाम-ए-इंसानियत फोरम से जुड़े। खून से लथपथ या आग से झुलसे लोगों को राहत और बचाव के लिए इन्हें अलग से कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई। हां, शिक्षा के साथ इंसानियत का पाठ जरूर पढ़ाया गया।
रेल हादसे में घायल हुए लोगों को पहुंचाया अस्पताल
10 अक्टूबर 2018 को हरचंदपुर में रेल हादसा हुआ। अल सुबह का वक्त था। बिना समय गंवाए छात्र हादसे वाले स्थान पर पहुंचे और उनका दूसरा दल अस्पताल में। घायलों का इलाज कराने के साथ ही उन्हें खाने-पीने का सामान भी मुहैया कराया।
शुक्रवार को फल वितरण
फोरम की ओर से प्रत्येक शुक्रवार की सुबह जिला अस्पताल में मरीजों को फल वितरित किए जाते हैं। हर गुरुवार को बस अड्डे पर गरीब तबके के लोगों को तहरी परोसी जाती है। गर्मियों में तीन माह तक बस अड्डा, रेलवे स्टेशन और अस्पताल में शीतल जल दिया जाता है। ठंड की रातों में गरीबों को खोज-खोजकर कंबल भी दिए जाते हैं। इस्लामिक विद्वान अली मियां ने इंसानियत की रक्षा के लिए मुल्क की आजादी के बाद से ही काम करना शुरू कर दिया था। ऑल इंडिया पयाम-ए-इंसानियत का गठन उन्होंने 1974 में किया। समय के साथ इस फोरम की शाखाएं भी बढ़ती गईं। मौजूदा समय में पूरे देश में करीब दस लाख लोग नि:स्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं।
इनकी सहभागिता सबसे अहम
फोरम में मदरसे के 150 छात्र खासे सक्रिय रहते हैं। इसके जनरल सेक्रेटरी अली मियां के पौत्र मौलाना बिलाल अब्दुल हई हसनी हैं। कोई भी घटना होती है तो बचाव कार्यो की अगुवाई मोहम्मद खालिद, अमीन हसनी, मोइन हसनी, मोहम्मद अजीम, मोहम्मद मुअविज, इरफान रैनी, मोहम्मद हसीब आदि करते हैं। इन छात्रों ने फोरम से जुड़ने के लिए शहर में भी वालंटियर बनाने शुरू कर दिए हैं। इसमें कई हिंदू युवा भी आगे आकर मदद कर रहे हैं।
क्या कहते हैं जिम्मेदार ?
- जनरल सेक्रेटरी पयाम-ए-इंसानियत मौलाना बिलाल कहते हैं कि हम हर हफ्ते बैठक कर निर्णय लेते हैं कि आगे क्या करना है। आपस में ही 100 या 200 रुपये लेकर फल, कंबल आदि का वितरण किया जाता है। छात्र भी अपनी पॉकेट मनी से सहयोग करते हैं। इसके लिए कहीं से फंडिंग नहीं होती।
- मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. एनके श्रीवास्तव का कहना है कि चिकित्सा सेवाओं के लिए जब भी बड़ी चुनौती आती है, तो अमूमन हर कोई खड़ा हो जाता है। लेकिन हाल के दिनों में कुछ युवा जो कि मदरसे से ताल्लुक रखते हैं, नि:स्वार्थ भाव से अस्पताल में मदद के लिए आ रहे हैं। ऐसे समय में सभी को इंसानियत का परिचय देते हुए मदद करनी चाहिए।