इंजीनियरिग छोड़ अमेरिकन केसर उगा रहे शेखर
- बीटेक करने के बाद पांच साल की नौकरी - खुद कर रहे आधुनिक खेती दूसरों को भी कर रहे प्रेरित
रायबरेली : वर्तमान दौर में युवा खेती से दूर भाग रहे हैं। इसके पीछे तर्क है कि यह सिर्फ जीवकोपार्जन और एक तरह से घाटे का सौदा है। डलमऊ के नरसवां गांव के शेखर चौधरी ने इस सोच को गलत साबित कर दिया। कड़ी मेहनत कर बीटेक बाद इंजीनियरिग की नौकरी मिली। उनका मन न लगा। खेती के प्रति उनका जुनून उन्हें गांव खींच लाया। परंपरागत खेती को छोड़ वह अमेरिकन केसर की खेती करके युवाओं के लिए मिसाल पेश कर रहे। उनके इन प्रयासों से आस पास के किसान भी खेती के गुर जानने आते हैं।
शेखर का चयन उड़ीसा स्थित भूषण स्टील प्लांट में बतौर असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर हुआ था। पांच वर्षों तक नौकरी की, लेकिन उनका मन नहीं लगा। वे खेती के बारे में जानकारी जुटाते रहे। 2013 में नौकरी छोड़कर गांव आ गए। उनके नौकरी छोड़ने के फैसले से घरवाले थोड़ा विचलित हुए, लेकिन खेती में उनकी लगन देख माता-पिता ने हौसला बढ़ाया। जानकारी जुटाई और जैविक खेती शुरू की। उत्तराखंड से अमेरिकन केसर का बीज लाकर बोआई की। कड़ी मेहनत के सहारे 80 पौधों को तैयार करने में कामयाबी हासिल की। यही नहीं, लौंग, इलायची, सुपारी, तेजपत्ता, स्ट्राबेरी समेत अन्य पौधे तैयार किए। इनके उत्पादन को लोग यहां के पर्यावरण के अनुकूल नहीं मानते हैं। इसके बाद भी पौधे तैयार कर नजीर पेश की। शेखर ने बताया कि अमेरिकन केसर में न तो खाद की जरूरत है और न दवाओं की। इसके पौधों को मवेशी भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। कम भूमि में भी बेहतर पैदावार होती है।