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2004 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका में दिखने लगा था इंदिरा गांधी का अक्श

हालात विपरीत हों तो संघर्ष कौशल की अग्निपरीक्षा होती है। उसको कैसे जीता जाता है, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसके कई प्रमाण दिए। प्रियंका की कार्यशैली भी कुछ वैसी ही है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 05:31 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 05:48 PM (IST)
2004 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका में दिखने लगा था इंदिरा गांधी का अक्श
2004 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका में दिखने लगा था इंदिरा गांधी का अक्श

रायबरेली, जेएनएन। हालात विपरीत हों तो संघर्ष कौशल की अग्निपरीक्षा होती है। उसको कैसे जीता जाता है, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसके कई प्रमाण दिए। प्रियंका की कार्यशैली भी कुछ वैसी ही है। शायद यही कारण है कि उनको इंदिरा का अक्श माना जाता है। 2004 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली ने प्रियंका में वह तमाम चीजें देखीं जो उनकी दादी में हूबहू मिलती थीं। बात करते हैं 2004 के चुनाव की। प्रियंका को महज पांच साल ही हुए थे, चुनावी माहौल में पार्टी के लिए काम करते हुए। यह चुनाव चुनौती भरा था। क्योंकि कांग्रेस के ही बड़े-बड़े योद्धा सोनिया की राह रोकने को मैदान में खड़े हो गए थे।

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दिल्ली में भाजपा और यूपी में सपा का शासन

दिल्ली में भाजपा की सरकार थी और यूपी में सपा का शासन। सोनिया गांधी के खिलाफ सपा प्रत्याशी के रूप में अशोक सिंह चुनाव लडऩे उतरे थे। वे उस दौर के राजनीतिक जलजला कायम रखने वाले अखिलेश सिंह के चचेरे भाई रहे। उस चुनावी माहौल को देखने वाले लोग बताते हैं कि कांग्रेस को शहर में कार्यकर्ता ढूंढे नहीं मिल रहे थे। हालात यह थे कि सोनिया के बैनर दिन में टांगे जाते और शाम होते ही विरोधी खेमे के लोग उसे लघ्घियों काटकर डीसीएम में भर ले जाते थे। प्रियंका को जब यह सब जानकारी हुई तो उन्होंने उसे चैलेंजिंग रूप में स्वीकार किया और 10 दिनों तक कैंप किया। पूरी बागडोर हाथों में ले ली। चुनाव आयोग से शिकायत की। इसके बाद एक माननीय को जिला बदर कर दिया गया। उस विपरीत हालात में प्रियंका संगठन के लोगों की हिम्मत को बांधे रखा और उन्हें लडऩे का माद्दा देती रहीं। 

हर चुनाव में आईं प्रियंका गांधी 

अपनी मां के सांसदी चुनाव में बराबर यहां आती रहीं। यह सिलसिला विधानसभा के चुनाव में भी जारी रहा। वर्ष 1999 में उन्होंने पांच जनसभाएं कीं। 2004 में दस दिन यहीं रहीं। 2007 में विधानसभा चुनाव की कमान संभाली। 2012 में संगठन की बागडोर हाथों में ले ली। 

2007 से संभालने लगीं पूरी चुनावी कमान

प्रियंका गांधी वाड्रा यूं तो अपने पिता के साथ भी बचपन में रायबरेली-अमेठीआ चुकी थीं। इसी परंपरा को बढ़ाते हुए वे अपने बेटे को भी यहां लेकर आने लगीं। उन्हें सार्वजनिक मंचों पर चुनावी वक्त में ही देखा जाता था, जबकि संगठन के लिए वे दिल्ली हो या रायबरेली ज्यादातर उपलब्ध हो जाती थीं। कार्यकर्ता बताते हैं कि मैडम सोनिया गांधी यहां से पारिवारिक रिश्ता मानती हैं। उसी रास्ते पर चलकर प्रियंका गांधी इसे अपना घर मानने लगी हैं। 

याद हैं उनके तीन सवाल

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विनय द्विवेदी बताते हैं कि उन्हें वह दिन याद है जब नवंबर 2012 में प्रियंका गांधी ने संगठन के लिए स्थानीय लोगों का चयन किया था। उनके तीन सवालों ने दिल जीत लिया। उन्होंने पूछा था कि तुम कांग्रेस में क्यों काम करना चाहते हो। फिर, यह भी जानना चाहा कि परिवार संगठन के बीच कैसे सामन्जस्य बैठाएंगे। तीसरी बात उन्होंने कही थी कि ईमानदारी से काम कर पाओगे कि नहीं। इस पर जोर दिया था कि ईमानदारी से काम करना, कोई भी दिक्कत आए हम साथ खड़े रहेंगे।


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