मुआवजा न अनुदान, पान की खेती से जीवन की गाड़ी चला रही लालती
- मैहर से लाई थीं पान की कलम 17 साल से बटाई की जमीन पर उगा रहीं फसल
रायबरेली: जहां चाह, वहां राह। इस कहावत को पलिया वीरसिंहपुर गांव की लालती सही मायने में चरित्रार्थ कर रही हैं। वे पिछले 17 वर्षों से पान की खेती कर रही हैं, वह भी किराए पर जमीन लेकर। इसी खेती से होने वाली आमदनी से उनके परिवार का खर्च चल रहा है। अबतक इन्हें सरकार की ओर से न तो कोई मुआवजा मिला और न ही अनुदान।
करीब डेढ़ दशक पहले ललिता मैहर, मध्य प्रदेश माता रानी के दर्शन करने गई थीं। वहीं से वे कटक प्रजाति के पान की कलम लेकर वापस आई थीं। ससुराल से कुछ दूरी पर बिशुनखेड़ा गांव में पांच बिस्वा जमीन बंटाई पर ली और पान की खेती करने लगीं। लालती बताती हैं कि जनवरी से पान की फसल की शुरुआत हो जाती है। कुश के ठंडल लाकर उन्हें छीलना, बांस की टटिया बनाना, उसके ऊपर पतवार छाना, टटिया के अंदर कुश की डंडियों को समान दूरी पर खड़ा करना और फिर उनके सहारे पान के डालियों को लगाने का काम करना शुरू कर दिया जाता है। ज्यादा धूप व ज्यादा ठंड, इसके लिए नुकसानदायक है। इसलिए जो टटिया बनाई जाती है, उसके ऊपर कुंदरू व परवल की फसल भी लगा दी जाती है। इनका कहना है कि चार से पांच दिन में एक हजार पान तैयार हो जाते हैं, जिनका वाजिब मूल्य बाजार से मिल जाता है।
लालती को ये बात कष्ट देती है कि पानी की खेती के लिए मिलने वाला अनुदान उन्हें अब तक नहीं दिया गया। कई बार फसल खराब हुई, तब भी मुआवजा नहीं मिला। बहरहाल, पान की खेती करके लालती क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश कर रही हैं।