खटारा बसें और स्टेशन बदहाल, 22 हजार मुसाफिर बेहाल
रायबरेली : परिवहन निगम का रायबरेली डिपो। निगम ने इसे तृतीय श्रेणी का दर्जा दिया है, लेकिन सुविधाएं ग्रामीणांचल के स्टेशन से भी गई गुजरी हैं। 170 बसों का बेड़ा है, लेकिन इसमें निगम की कम और अनुबंधित बसें ज्यादा हैं। डिपो के पास अपनी जो बसें हैं, उनमें से तमाम खटारा हो गईं हैं। इसकी वजह देखरेख का अभाव है। 10 से 12 बसें किसी न किसी खराबी के कारण वर्कशाप से निकलती ही नहीं। जो रूटों पर जाती भी हैं तो भरोसा नहीं रहता कि कब बीच राह में खराब हो जाएं।
मूलभूत सुविधाओं का टोटा: स्टेशन परिसर के जर्जर भवन के कायापलट का काम चल रहा है, लेकिन पेयजल, यूरिनल, बैठने के लिए मेज और छायादार जगह जैसी अन्य मूलभूत सुविधाओं का यहां पर टोटा है। कई सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक आए और चले गए। कुछ तो सिर्फ समय बिताते रहे तो कुछ ने सुधार के प्रयास किए, लेकिन प्रबंधन की लापरवाही से उनकी मेहनत रंग न लाई।
ग्रामीण रूटों पर टैक्सी चालकों की बल्ले-बल्ले: रायबरेली डिपो के जिले में 56 रूट हैं। लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज ऐसे रूट हैं, जिन पर सबसे अधिक सवारी निकलती हैं। अधिकारियों का फोकस भी इन्हीं रूटों पर रहता है। रायबरेली से विशुनदासपुर-गोंडा, डलमऊ-धीरनपुर, खीरों-पाहो, सलोन-जगतपुर-मुराईबाग-कानपुर, पूरे पांडेय-भोजपुर-दौलतपुर, लालगंज-पूरे पांडेय-निसगर, रायबरेली-जायस नसीराबाद समेत कई ग्रामीण रूट ऐसे हैं, जिन पर डिपो की एक भी बस नहीं हैं। यात्री डग्गामार वाहनों में धक्के खाने को मजबूर हैं।
फर्स्ट एड बाक्स नहीं, सीट जर्जर तो किसी का गेट: बस चाहे निगम की हो या अनुबंधित, फर्स्ट एड बाक्स और फायर इस्टिंग्यूसर लगाते ही नहीं। किसी बस की सीट झटका लगने पर गिर जाती है तो किसी का दरवाजा नहीं खुलता। चालक की सीट के पास तारों का मकड़जाल तो ज्यादातर बसों में देखने को मिल जाता है।
अभी जल्द ही डिपो का कार्यभार ग्रहण किया है। बसों की स्थिति से लेकर स्टेशन तक में तमाम खामियां हैं। इन्हें दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
एमएल केसरवानी, सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक, रायबरेली डिपो