गन्ने की खेती से 'रघुवीर' की जिदगी में घुली मिठास
-- कभी थे बटाईदार अब खुद हैं दस बीघे के काश्तकार -- किसानों को प्रेरित कर सुधार रहे उनकी आर्थिक स्थिति
रायबरेली : सिचाई, बिजली, खाद, बीज समेत अन्य दिक्कतों ने किसानों की राह और मुश्किल कर दी है। ऐसे में जहां लोगों का रुझान खेती से हट रहा है, वहीं सनविरवन जैसे एक छोटे से गांव के रघुवीर किसानी करने में पूरी तरह तल्लीन हैं। यही नहीं, वे किसानों की आमदनी बढ़ाने की सरकार की मंशा को भी फलीभूत कर रहे हैं। करीब 10 साल पहले रघुवीर यादव साइकिल से घर-घर दूध पहुंचाते थे। इसी से उनके परिवार का भरण पोषण होता था। कहने के लिए दो बीघा भूमि थी, लेकिन इससे सिर्फ खाने भर को ही अनाज हो पाता था। वर्ष 2012 में उन्होंने गन्ने की फसल की तरफ रुख किया। रकबा कम पड़ा तो बटाई पर दूसरों के खेत ले लिए। धीरे-धीरे आमदनी बढ़ने लगी और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती गई। अब वह 10 बीघा भूमि के मालिक हैं।
दूसरों को भी दिखाई उन्नति की राह
प्रगतिशील किसान कहे जाने वाले रघुवीर ने इसी खेती की बदौलत न सिर्फ अपना मकान बनवाया, बल्कि ट्रैक्टर भी खरीदा। यही नहीं, दूसरे किसानों को भी गन्ने की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनके बताए रास्ते पर चलकर ही रामलाल, रामफेर, भगवानदीन समेत आसपास के कई किसानों ने गन्ने की खेती शुरू कर दी है।
कम मेहनत और लागत में अधिक मुनाफा
रघुवीर यादव का कहना है कि एक बीघा गन्ने की खेती से साल भर में करीब 30 से 40 हजार की आमदनी होती है। इस फसल में एक ही बार अधिक मेहनत करनी पड़ती है। उसके बाद दो वर्षों तक सिर्फ गोड़ाई, सिचाई करनी पड़ती है। कम लागत में फसल तैयार हो जाती है।