फूलों की खेती से महकी जिंदगी
आशुतोष सिंह रायबरेली फूलों का काम है मुस्कुराना और महकाना। वे हों चाहे जहा अपने मकस
आशुतोष सिंह, रायबरेली : फूलों का काम है मुस्कुराना और महकाना। वे हों चाहे जहा, अपने मकसद से नहीं भटकते। यही कारण कि अब बागों से आगे जाकर खेतों में भी उनकी ही बहार है। ये बहार किसानों में आर्थिक समृद्धि ला रही है।
किसान परंपरागत फसलों के बजाय खेतों में नित नए प्रयोग कर रहे हैं। उनमें से एक हैं खीरों ब्लॉक के नुनैरा गाव निवासी लल्लू। वे करीब 25 वषरें से फूलों की खेती कर रहे हैं। सामान्य खेती से ऊबते हुए इनके जेहन में कुछ हटकर अलग करने की ललक जगी तो सबसे पहले बिजली के फूल की खेती की। फिर गुलाब की मांग होने लगी। इसके बाद जिला उद्यान केंद्र पहुंचे और गुलाब लगाने के लिए पौध ले आए। पहले थोड़ा लगाया, मुनाफा हुआ तो इसे रोजी रोटी का जरिया बना लिया।
किराए पर कर रहे फूलों की खेती
लल्लू ने अपने गाव नुनैरा में फूल की खेती की। उसके बाद करीब दस वर्ष पूर्व उन्होंने बनईमऊ में आठ बीघे खेती किराए पर ले ली। जिसमें गुलाब, बिजली, गेंदा, नवरंग आदि फूल उगाने लगे। बड़े पैमाने पर काम करने के कारण वहीं बस गए। आज भी नुनैरा में एक बीघा गेंदा, बनईमऊ में डेढ़ बीघा गुलाब, बिजली आदि की खेती कर रहे हैं।
कोलकाता से आता बीज
लल्लू ने बताया कि बिजली फूल के बीज इंदौर से मंगाता हूं। गेंदा का बीज खासकर कोलकाता से मंगवाया जाता है। नवरंग का बीज उच्जैन से लाए थे। उच्च गुणवत्ता के बीज होने के कारण अच्छे फूल तैयार होते हैं। जिसकी बाजार में माग रहती है।
लखनऊ में उपलब्ध है बाजार
ज्यादातर फूल लल्लू के यहा से माली ले जाते हैं। लेकिन कभी-कभी भगवंत नगर उन्नाव, लालगंज आदि के माली भी पहुंचते हैं। वहीं लल्लू गेंदा सप्लाई लखनऊ के नींबू पार्क में मंडी करते हैं।
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कोट
एक बीघा गुलाब की खेती करने में करीब 25 हजार रुपये का खर्च आता है। औसतन 80 हजार रुपये के फूल तैयार होते हैं। गेंदा में 20 हजार का खर्च आता और 50 हजार रुपये के फूल तैयार होते हैं।
- शैलेंद्र विक्रम सिंह, उद्यान विशेषज्ञ।
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