रामेश्वर को अब भी याद है फिरंगियों का खूनी खेल
सरेनी (रायबरेली) सरेनी में गोलीकांड और अंग्रेजों के जुल्मो-सितम की कहानी तो लोग सिर्फ स
सरेनी (रायबरेली) : सरेनी में गोलीकांड और अंग्रेजों के जुल्मो-सितम की कहानी तो लोग सिर्फ सुनते होंगे। मगर, 103 साल के रामेश्वर ने इसे देखा ही नहीं, बल्कि महसूस भी किया। क्षेत्र के चिताखेड़ा के यह चश्मदीद बताते हैं कि सरेनी में बाजार का दिन था। वह अपने चचेरे भाई गोकरन प्रसाद त्रिपाठी के साथ बाजार गए थे। क्रांतिकारियों ने इसी दिन को सरेनी थाने में झंडा फहराने के लिए चुना था। अंग्रेजी हुकूमत के निशाने पर होने के कारण आंदोलन के मुख्य अगुवा ठाकुर गुप्तार सिंह और राम औतार अंडरग्राउंड थे। पर्दे के पीछे रहकर वे आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे। उनकी जगह सूर्य प्रसाद त्रिपाठी ने बागडोर संभाल रखी थी। बाजार में आजादी के मतवालों की भीड़ जुटने लगी थी। सूर्य प्रसाद उन्हें संबोधित कर रहे थे। तभी इसकी भनक पुलिस को लग गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। भीड़ उनके पीछे चल पड़ी। आक्रोशित लोग बिना अपने नेता को लिए जाने को तैयार नहीं थे। लोगों ने थाने पर पथराव शुरू कर दिया। उन्हें भगाने की खातिर पुलिस ने गोलियों की बौछार कर दी। जिसके बाद पूरा थाना परिसर खून से लाल हो गया था।
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इन वीर सपूतों ने गंवाई थी जान
गोलीकांड में पांच क्रान्तिकारियों ने अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। इन वीरों में सुर्जीपुर के टिर्री सिंह, सरेनी के सुक्खू सिंह, गौतमनखेड़ा के औदान सिंह, हमीरगांव के महादेव चौधरी और मानपुर पल्टीखेड़ा के पं. राम शंकर द्विवेदी शामिल हैं। धूरेमऊ के महावीर प्रसाद श्रीवास्तव और बाबू धोबी समेत तमाम लोग जख्मी हुए थे। देश की आजादी के लिए इन क्रान्तिकारियों का बलिदान व संहर्ष आज भी लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है। इनसेट
भगदड़ में घायल हुए थे अनगिनत
बुजुर्ग रामेश्वर बताते हैं कि गोली लगने से जो बच गए थे, वे मची भगदड़ में घायल हो गए थे। इसके बाद भी क्रांतिकारियों में जुनून कम नहीं हुआ था। लोगों कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थे। उनके इसी जज्बे को अपने बूटों तले रौंदने का भी अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस ने खूब प्रयास किया। कई-कई दिन तक गांवों में छापेमारी चली। तमाम लोग गिरफ्तार हुए और यातनाएं झेलीं। फिरंगियों ने गांवों में खौफ फैला रखा था। इसका असर कई दिन तक देखा गया।